पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/९

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भूमिका

इस खण्डमें १६ सितम्बर १९२७ से ३१ जनवरी १९२८ तक पूरे ४३ महीनोंके घटनाक्रमका समावेश होता है । इस अवधिमें गांधीजी, वाइसराय महोदयकी मुलाकातके कारण थोड़े व्यवधानको छोड़कर अपनी दक्षिणकी यात्रा में रहे। वे लंका गये और वहाँसे लौटकर उन्होंने उड़ीसाका दौरा किया। दिसम्बरमें अ० भा० कांग्रेसके मद्रासमें होनेवाले वार्षिक अधिवेशनमें भाग लेनेके बाद गांधीजी अहमदाबाद लौट आये। यह लम्बी यात्रा उन्होंने मुख्य रूपसे खादीकार्य के लिए धन-संग्रहके हेतुसे की थी और इसमें उन्हें तमिलनाडु और त्रावणकोरसे १६३,९०५ रुपये तथा लंकासे १०५,००० रुपये प्राप्त हुए। इस धन-राशिका उन्होंने बड़ी सावधानीपूर्वक हिसाब रखा और उसे प्रकाशित करवाया ( देखिए परिशिष्ट २) । गांधीजी जब लंकामें थे, तो उनकी अनुपस्थितिमें ब्रिटिश सरकार द्वारा एक शाही आयोग नियुक्त करनेकी घोषणा की गई थी। साइमन कमीशनके नाम से प्रसिद्ध इस आयोगके विरोधमें भारत में एक देशव्यापी तूफानकी सुगबुगाहटका संकेत देते हुए यह खण्ड समाप्त होता है । अपनी दक्षिण-यात्राके दौरान गांधीजीने ब्राह्मण-अब्राह्मण समस्या और वर्णाश्रमके सम्बन्धमें अपने विचारोंको स्पष्ट किया । वर्णाश्रम धर्म के सम्बन्धमें गांधीजीकी जो दृष्टि थी उसको लेकर सुधारकोंके मनमें बड़ी शंकाएँ थी और इसलिए उनके लिए यह स्पष्टीकरण आवश्यक हो गया था। उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा, "वर्णाश्रमकी मेरी जो कल्पना है, उसमें अस्पृश्यता और जात-पाँतके वर्तमान भेद-जैसी कोई चीज नहीं है। वर्णोंका श्रेष्ठता या हीनतासे कुछ लेना-देना नहीं है। वर्ण तो उसी एक निश्चित नियमकी स्वीकृति है जो मानवके सच्चे सुखका स्रोत है और उसका सीधा-सादा मतलब यह है कि हमें अपने पूर्वजोंसे प्राप्त होनेवाले सभी अच्छे गुणोंको मूल्यवान मानकर उनका परिरक्षण करना चाहिए" (पृष्ठ ८५) । एक पत्रलेखककी आलोचनाके उत्तरमें उन्होंने १७-११-१९२७ को अपना दृष्टिकोण अधिक विस्तारपूर्वक स्पष्ट करते हुए लिखा: “यह योजना कल्पनादेशकी लग सकती है, तथापि लड़खड़ाते हुए कदमोंसे विशृंखलताकी तरफ बढ़ते हुए समाजकी निर्बाध स्वच्छन्दताका जीवन जीनेकी अपेक्षा मैं अपनी कल्पनाके इस लोकमें रहना ज्यादा पसन्द करता हूँ। " (पृष्ठ २७१) । गांधीजीने श्री राजगोपालाचारीकी आलोचना करनेवाले नवयुवकोंकी जो कड़ी भर्त्सना की उससे पता चलता है कि दक्षिण में व्याप्त कटुताका वातावरण कितना तीव्र था । उन्होंने तमिलनाडुमें ब्राह्मणेतर समाजके नेताओंसे जो चर्चाएँ की -- जिनकी नोंद महादेव देसाईने ली है (देखिए परिशिष्ट १) -- और श्री नाडकर्णीकी आलोचनाके जवाबमें 'यंग इंडिया' में जो लेख प्रकाशित किया (पृष्ठ २६७-७१) उनसे यह साफ जाहिर होता है कि गांधीजीका प्रयत्न इस दिशामें था कि हमें भूत और भविष्यमें