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पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

तरह सन्तुष्ट कर सकेगा। और दूसरे यह वास्तवमें भारतीय पाठकोंके लिए लिखा गया है, वाइसराय जैसे बहुत बढ़िया चीजकी माँग करनेवाले पाठकके लिए नहीं, जिसका मन प्राप्त और अर्जित पूर्वग्रहों तथा पूर्वधारणाओंके भारसे दबा हुआ है। इसीलिए मैंने तुम्हें यह राय दी है कि तुम सबसे पहले इसे धैर्यपूर्वक पढ़ लेना ऐसे व्यक्तिकी तरह नहीं जिसने अपनेको भारतीय बना डाला है बल्कि सहानुभूतिशून्य अंग्रेज आलोचककी दृष्टिसे जो किसी भी बातको यों ही नहीं स्वीकार कर लेगा, बल्कि हर बातके लिए प्रमाणकी अपेक्षा करेगा। और अगर तुम्हें इससे पूरा सन्तोष न हो तो इसे उन्हें कतई न भेजना। मैंने सर हेनरी लॉरेन्सके लिए भी कुछ सामग्री तैयार कराई थी। इसमें प्यारेलाल और महादेवके दिमाग का उपयोग हुआ है। लेकिन सहानुभूतिशून्य आलोचक होनेपर जैसा मैं चाहता वैसा यह भी नहीं है। मुझे तो जो-कुछ मिल सका उसीमें सन्तोष करना पड़ा। मुझे यह मालूम है कि यह ऐसा विषय हैं जिसके लिए किसी धैर्यवान व्यक्तिके अथक परिश्रमकी आवश्यकता है। किन्तु दुर्भाग्य- वश, मेरे पास ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसे मैं यह काम सौंप सकूँ, इसीलिए यह अबतक पड़ा हुआ है। मैं तुम्हें बता नहीं सकता कि ठोस अनुसन्धानका यह अभाव मुझे कितना परेशान करता है। अपना यह दुःख मैं कभी पूरा नहीं प्रगट करता किन्तु आज तुम्हारे आगे मैंने अपना मन थोड़ा-बहुत खोलकर रखा है क्योंकि तुमने मुझे अपनी लज्जा स्वीकार करनेके लिए बाध्य कर दिया है। मैं जानता हूँ कि मुझे तुम्हें सन्तुष्ट करना चाहिए था और सीधा तुम्हारे पास उत्तम कोटिका एक दोषहीन, सुपाठ्य निबन्ध भेजना चाहिए था। अब मैंने निबन्धके विषयमें, जिसके निर्णायकोंमें से एक मैं भी था, तुम्हारी धारणाको उसके खिलाफ काफी मोड़ दे दिया है। इस पूर्व- धारणाके साथ इसे पढ़ना और मुझे बताना कि तुमने क्या सार निकाला।

अभीतक तो मुझे कोई तकलीफ नहीं है। समाचारपत्रोंमें जो तुमने पढ़ा वह सब झूठ था। ऐसी हरेक समाचार एजेंसीको बन्द कर देनेकी आवश्यकता है।

बेशक शिमलामें तुमने जो उजाला देखा था वह ठीक था। उड़ीसामें तुम्हारी जरूरत है। लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम सख्त काम लेनेवाले बनो। यदि तुम राहत- कार्यों में हिस्सा लो तो देखना कि हिसाब-किताब ठीक-ठीक रखा जाये। मैंने अभी तक प्रकाशित रूपमें कुछ नहीं देखा है। प्रत्येक कार्यकर्त्तासे आग्रह करना कि वह एक रोजनामचा रखे जिसमें उसके दैनिक कार्य-कलापका सही-सही विवरण हो। लेकिन मैं तुमसे वहाँ केवल तात्कालिक राहत कार्य ही नहीं करवाना चाहता; मैं चाहता हूँ कि तुम इस वार्षिक संकटसे उबरनेका रास्ता भी ढूंढ़ो।

कांग्रेसकी राजनीतिके प्रति तुम जरा कठोर हो । राष्ट्रीय विकासमें उसका भी एक स्थान मानना पड़ेगा। यदि विधानसभा और कौंसिलोंका महत्त्व है तो उससे भी अधिक कांग्रेसका है। यद्यपि कांग्रेसके वर्तमान कार्यक्रम या उसकी कार्य प्रणालीके प्रति मेरी जरा-सी भी सहानुभूति नहीं है फिर भी मैं कह सकता हूँ कि वह एक महान संस्था है --४० सालका अटूट रिकार्ड रखनेवाली एकमात्र अखिल भारतीय संस्था । मैं इसकी चर्चाओंमें बहुत कम भाग लूंगा, लेकिन मैं उनमें तबतक शामिल