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पत्र: जयरामदास दौलतरामको

कि समय आने पर ईश्वर मुझे, मैं अकसर जो दावा करता रहा हूँ, अर्थात् यह कि मैं हरएक मुसलमानका मित्र व भाई हूँ – उसे सिद्ध करनेकी शक्ति देगा।

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३८९५) की फोटो-नकलसे।

 

१४४. पत्र: जयरामदास दौलतरामको

स्वराज आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८

प्रिय जयरामदास,

मैं इतना व्यस्त रहा हूँ कि तुम्हारे २ जूनके पत्रका उत्तर अबतक नहीं दे पाया। वह तो वल्लभभाईने मुझे बारडोली बुला लिया है, जिससे पहलेके बाकी पड़े पत्रोंको निबटानेका थोड़ा समय मिल गया है।

हाँ, तुम्हारे तर्कमें मुझे एक दोष दिखाई देता है। देशी मिलोंके बल पर तुम विदेशी कपड़ेके प्रयोगमें तबतक कमी नहीं ला सकते, जब तक कि ये मिलें पूरी तरहसे हमारे ही नियन्त्रणमें न आ जायें। इसका कारण कोई और नहीं तो यही समझो कि जब कभी इन मिलोंको विदेशी कपड़े अपने कपड़ोंसे सस्ते दिखाई देंगे या जब कभी उनके पास बाजारमें ले जानेके लिए अपने तैयार किये हुए कपड़ोंकी कमी होगी तब वे पहलेकी ही तरह स्वदेशी कपड़ोंके नामसे हम पर विदेशी कपड़े थोप देंगे। हमारे सामने जो सबसे साफ सीधा रास्ता है, वास्तव में उससे और कोई छोटा रास्ता नहीं। क्या यूक्लिडने हमें यह नहीं सिखाया है कि दो बिन्दुओंको मिलानेवाली सरल रेखा उन दोनोंके बीचकी सबसे छोटी दूरी है? तुम्हें मालूम ही है कि मैंने मिल-मालिकोंसे समझौता करनेकी कितनी ज्यादा कोशिश की, मगर सब बेकार रही।

जयरामदास दौलतराम
हैदराबाद (सिन्ध)

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३९१०) की माइक्रोफिल्मसे।