परिशिष्ट ६
चैमनेका हलफनामा
[ प्रिटोरिया
जून २५, १९०८ ]
मैं प्रिटोरियाका मॉटफोर्ड चैमने, एशियाइयोंका पंजीयक शपथ लेकर कहता हूँ:
(१) मैंने उक्त प्रार्थीका[१] प्रार्थनापत्र, जो कि एशियाइयोंके पंजीयककी हैसियतसे मुझे भेजा गया था, और उसके साथ नत्थी किये गये हलफनामे पढ़ लिए हैं।
(२) मैं सादर निवेदन करता हूँ कि प्रार्थकि हलफनामेके[२]३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १० और १४ अनुच्छेदोंमें तथा ईसप इस्माइल मियाँ और मोहनदास करमचन्द गांधीके हलफनामोंमें[३] वर्णित आरोप इस मामलेके विषयसे असम्बद्ध हैं। तथापि जो भी आरोप लगाये गये हैं उनके विषयमें उपनिवेश मन्त्रीके नाम श्री गांधी और दूसरे लोगोंके द्वारा भेजा गया तारीख २९ जनवरी, १९०८ का पत्र[४] और उपनिवेश मन्त्रीका ३० जनवरी, १९०८ का उत्तर[५] सारी स्थिति स्पष्ट कर देते हैं।
(३) प्रार्थनापत्र के अनुच्छेद ७ के सम्बन्धमें मेरा यह कहना है कि मैं ३० जनवरी, १९०८ के पूर्वोक्त पत्रके साथ सहमत था और इसलिए मैंने प्रार्थीसे पंजीयनके लिए एक लिखित प्रार्थनापत्र ले लिया।
(४) अनुच्छेद ११ के सम्बन्धमें: प्रार्थीके द्वारा दी गई अर्जी सरकारी फार्मपर थी और वह मेरे कार्यालयके रिकार्डमें फाइल हो गई है और मैं उसे न तो अपनेसे अलग कर सकता हूँ, न वापस कर सकता हूँ।
उस प्रार्थनापत्रके साथ दिये गये दूसरे प्रलेखों---शान्ति-रक्षा अध्यादेश के अनुसार प्रदत्त प्रार्थीके अनुमति-पत्र और १८८५के कानून संख्या ३ के अनुसार प्रदत्त उसके पंजीयन प्रमाणपत्रके विषयमें उत्तर यह है कि ज्यों ही शिनाख्त से सम्बन्धित कार्रवाई पूरी हो जायेगी त्यों ही उन्हें प्रार्थीको लौटा देनेमें हमें न तो कोई आपत्ति है और न कभी रही है।
प्रार्थियोंकी संख्या बहुत ज्यादा है और उनके प्रार्थनापत्रोंको अलग-अलग वर्गोंमें बाँटकर निपटानेकी आवश्यकता है। इसलिए वेरीनिगिंगके प्रार्थनापत्र, जिनमें प्रार्थीका प्रार्थनापत्र सम्मिलित है, अभी हाल ही में हाथमें लिये गये हैं।
(५) अनुच्छेद १५ के सम्बन्धमें: प्रार्थीका पंजीयन प्रमाणपत्र, जब उसने इस सम्बन्धमें प्रार्थनापत्र दिया उसके पहले ही हस्ताक्षरित हो गया था और सामान्य क्रममें वह ( उसके प्रार्थना पत्रके साथ आये हुए सारे प्रलेखोंके साथ ) उसे आजसे सात दिनके अन्दर किसी जिम्मेदार अधिकारीके द्वारा, जिसे इन कागजोंको सही व्यक्तिको देनेका आदेश होगा, सौंप दिया जायेगा।