- पैरा २१: "सन् १९०८ का अधिनियम २" की जगह तो "सन् १९०७ का अधिनियम २" होना चाहिए।
- पैरा २२: समझौते की शर्तोंका उल्लेख करना जरूरी है।
इस पैरेके बाद कुछ सम्बन्ध जोड़नेवाले विवरणकी कमी जान पड़ती है। आप यह बताना चाहते हैं। कि भारतीयोंने ईमानदारीके साथ समझौतेके विषय में जैसी कल्पना कर रखी थी वैसी वह नहीं है, यह उन्होंने कैसे समझा।
- पैरा २५: इसकी शब्द-रचना इस प्रकार बदली जाये कि यह स्पष्ट हो जाये कि [एशियाई कानूनको] रद करनेकी बात पूरी नहीं की गई, इसमें दोष भारतीयोंका नहीं है। यह स्पष्ट कर देना भी अच्छा होगा कि
जनरल स्मट्स समझौतेकी लिखित और सुस्पष्ट शर्तोंसे भी कहाँ और कैसे मुकर गये।
- पैरा २६: भारतीयोंने अपने प्रमाणपत्र क्यों जला दिये, इस बातका पर्याप्त स्पष्टीकरण नहीं हुआ है। यह याद रखना चाहिए कि यदि इस विवरणका कोई उपयोग किया गया तो वह उन लोगोंकी जानकारीके लिए किया जायेगा जो इस सवालके बारेमें कुछ भी नहीं जानते।
- पैरा २९: मेरा सुझाव है कि उल्लिखित अर्जी परिशिष्टकी तरह छापी जानी चाहिए।
- पैरा ३०: (१) क्या यहाँ फिर "१९०८", "१९०७" की जगह भूलसे नहीं छप गया है?
इतना कहकर बाकीके विषय में मैं यह जरूर कहूँगा कि इस लम्बी कहानीको संक्षेप करने और उसके सारभूत मुद्दोंको सुस्पष्ट करने में आपको आश्चर्यजनक सफलता मिली है। मुझे उम्मीद है कि मेरा ये थोड़े-से सुझाव देना आपको खटकेगा नहीं। आप सारी स्थितिसे पूरी तरह परिचित हैं, फिर भी मुझे लगता है कि इस देशके लोगोंको कैसी और कितनी जानकारी देनेकी आवश्यकता है, यह मैं निश्चय ही आपसे ज्यादा अच्छी तरह समझ सकता हूँ।
आपका, विश्वस्त,
ऍम्टहिल
हस्तलिखित मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४९७५) से।
परिशिष्ट १५
ट्रान्सवालके भारतीयोंके प्रार्थनापत्र
(१) साम्राज्ञीको प्रार्थनापत्र[१]
लन्दन
अन्तरात्माके हेतु पिछले दो वर्षोंसे ट्रान्सवालकी जेलोंमें सजा भोगनेवाले ट्रान्सवालके
ब्रिटिश भारतीयोंकी पत्नियों, माताओं या पुत्रियोंका प्रार्थनापत्र
हम उन ब्रिटिश भारतीयोंकी पत्नियाँ, माताएँ, या पुत्रियाँ है जो ट्रान्सवालमें दुर्भाग्य से चल रहे एशियाई संघर्ष के सिलसिले में जेल भोग चुके हैं या अब भी भोग रहे हैं।
- ↑ इस बातके कोई प्रमाण नहीं हैं कि इन प्रार्थनापत्रोंका मसविदा गांधीजी द्वारा तैयार किया गया था। तथापि ऐसी सम्भावना है कि प्रार्थनापत्र देने का सुझाव उन्होंने ही दिया हो। उनके लन्दन रवाना होने से पहले ये प्रार्थनापत्र हस्ताक्षर प्राप्त करनेके उद्देश्यसे घुमाये जाने के लिए तैयार कर लिये गये थे। इंडियन ओपिनियनमें ये इस टिप्पणीके साथ प्रकाशित हुए थे कि ट्रान्सवालमें बहुत से लोग इनपर हस्ताक्षर कर रहे हैं।