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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/१४७

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अनुपम मिश्र


बाप, पोखरन और कुचामन की झीलों में तो बाक़ायदा नमक की खेती होती है। झीलों के पास मीलों दूर तक ज़मीन में नमक उठ आया है।

इसी के साथ है पूरे प्रदेश को एक तिरछी रेखा से नापती विश्व की प्राचीनतम पर्वतमालाओं में से एक माला अरावली पर्वत की। ऊंचाई भले ही कम हो पर उम्र में यह हिमालय से पुरानी है। इसकी गोद में हैं सिरोही, डूंगरपुर, उदयपुर, आबू, अजमेर और अलवर। उत्तर-पूर्व में यह दिल्ली को छूती है और दक्षिण-पश्चिम में गुजरात को। कुल लंबाई सात सौ किलोमीटर है और इसमें से लगभग साढ़े पांच सौ किलोमीटर राजस्थान को काटती है। वर्षा के मामले में राज्य का यह संपन्नतम इलाक़ा माना जाता है।

अरावली से उतर कर उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व तक फैला एक और भाग है। इसमें उदयपुर, डूंगरपुर के कुछ भाग के साथ-साथ बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, बूंदी, टौक, चित्तौड़गढ़, जयपुर और भरतपुर ज़िले हैं। मरुनायकजी यानी श्रीकृष्ण के जन्म स्थान ब्रज से सटा है भरतपुर। दक्षिणी-पूर्वी पठार भी इसमें फंसा दिखता है। इसमें कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर और धौलपुर हैं। धौलपुर से मध्यप्रदेश के बीहड़ शुरू हो जाते हैं।

यहां जिस तरह नीचे माटी का स्वभाव बदलता है, इसी तरह ऊपर आकाश का भी स्वभाव बदलता जाता है।

हमारे देश में वर्षा मानसूनी हवा पर सवार होकर आती है। मई-जून में पूरा देश तपता है। इस बढ़ते तापमान के कारण हवा का दबाव लगातार कम होता जाता है। उधर समुद्र में अधिक भार वाली हवा अपने साथ समुद्र की नमी बटोर कर कम दबाव वाले भागों की तरफ़ उड़ चलती है। इसी हवा को मानसून कहते हैं।

राजस्थान के आकाश में मानसून की हवा दो तरफ़ से आती है। एक

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