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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/१७७

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राजरोगियों की ख़तरनाक रज़ामंदी


अच्छे लोग भी जब राज के नज़दीक पहुंचते हैं तो उनको विकास का रोग लग जाता है, भूमंडलीकरण का रोग लग जाता है। उनको लगता है सारी नदियां जोड़ दें, सारे पहाड़ों को समतल कर दें-बुलडोज़र चला कर, उनमें खेती कर लेंगे। मात्र यही ख्याल प्रकृति के विरुद्ध है। मैं बार-बार कह रहा हूं कि यह प्रभु का काम है, सुरेश प्रभु सहित देश के प्रभु बनने के चक्कर में इसे नेता लोग न करें तो अच्छा है। नदियां प्रकृति ही जोड़ती है। गंगा कहीं से निकली, यमुना कहीं से निकली। अगर ऊपर हेलीकॉप्टर से देखें तो एक ही पर्वत की चोटी से ठीक नीचे दो बिंदु से दिखेंगे। वहां उनमें गंगोत्री और यमनोत्री में बहुत दूरी नहीं है। प्रकृति उन्हें वहीं जोड़ देती। लेकिन सब जगह अलग-अलग सिंचाई करके दोनों कहां मिलें, यह प्रकृति ने तय किया था। तब वहां संगम बना। उसके बाद डेल्टा की भी सेवा करनी है नदी को।

'जब दामोदर नदी पर बांध बन रहा था, तब कपिल भट्टाचार्य नाम के एक इंजीनियर थे। वे किसी वैचारिक संगठन से नहीं जुड़े थे। लेकिन वे नदी से जुड़े हुए आदमी थे। उन्होंने अपने विभाग से अनुरोध किया कि दामोदर नदी घाटी योजना को रोक लें। लोगों ने कहा कि तुम क्यों इसे रोकना चाहते हो। इतने करोड़ की योजना है। इससे यह लाभ, वह