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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२१५

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अनुपम मिश्र


तैयारी पक्की रखी। लड़ना भी शब्द नहीं रहा। अकाल भी हमारे परिवार का एक हिस्सा है। प्रकृति आज थोड़ा-सा ज़्यादा पानी बरसा गई है कल थोड़ा कम गिरा देगी। तो उसके स्वभाव को देखना है। उन्होंने एक अंदाज़ लगाया होगा अपने 500 पीढ़ियों के इतिहास में से। हर 13-14 साल में वर्षा कम हो जाती है, अकाल पड़ता है। तो अपने को 12-13 साल तक एक जंगल को बचा कर रखना है। ओरण का जो अलग-अलग बंद और खुलने का समय है वह भी तय किया गया। पूजा और मंदिर से भी जोड़ा गया, वह तो इसलिए कि उनको बड़े पैमाने पर कोई चीज़ करनी थी। वह धर्म से जुड़े बिना नहीं हो सकती थी। लोहिया जी की सबसे अच्छी परिभाषा है धर्म की। उन्होंने यह कहा कि धर्म एक दीर्घकालीन राजनीति है और राजनीति एक अल्पकालीन धर्म है। जो भी आप को पांच दिन के लिए पद मिले, पांच साल के लिए उसको धर्म मानकर अपनाना चाहिए। किसी समाज में कोई बात कुछ हजार साल तक के लिए पहुंचानी है तो उसे धर्म से जोड़ा। ओरण बनाया, उसे मंदिर से जोड़ा। नहीं तो उसको वन-विभाग से जोड़ना पड़ता और वह देखते-देखते उजड़ जाता।

जिनको हम पर्यावरणीय या प्राकृतिक विपदाएं मानते हैं ये विपदाएं नहीं हैं। ये हमारे रोजमर्रा के हिस्से हैं। उनसे हमको खेलना आना चाहिए। फिर हम उनसे आनंद के साथ खेल पाएंगे।

लेकिन व्यापक निष्क्रियता जो समाज में आ गई उसके लिए क्या उपाय करने होंगे?

समाज में एक व्यापक निष्क्रियता आई है तो समाज को उसका दंड भुगतना भी पड़ेगा। इतनी खुशफ़हमी में नहीं रह सकते कि समाज पर कभी विपत्ति न आए। सजग नहीं रहेंगे हम तो विपत्ति आएगी। फिर भोगना भी पड़ेगा। विनोबा जी एक बहुत अच्छी बात कहते थे कि यह

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