समय महाराज के साथ इने गिने दस आदमियों में सिद्दी इब्राहीम था । महाराज का पहला सरनोबत अर्थात सेनापति नूरखां बेग था। ई. सन 1673 में जब बहलोलखां पर प्रतापराव गूजर ने हमला किया, उस समय सिद्दी हिलाल नामक सरदार अपने पांचों बेटों सहित बहलोल से लड़ रहा था । जंजिरे के सिद्दी को मार भगानेवाला दौलतखां महाराज के जहाजी बेड़े का सरदार था । " शिवाजी की सेना में बहुत से मुसलमान थे, जो शिवाजी के साथ मिलकर मुसलमान बादशाह के खिलाफ लड रहे थे । अतः यह लड़ाई किसी भी तरह से हिन्दू और मुस्लिम के बीच की लड़ाई नहीं थी। दूसरी ओर औरंगजेब की सेना का सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह था, जो कि हिन्दू था और मराठे थे। शिवाजी की सेना में शीर्ष स्तरों पर मुसलमानों का होना और औरगंजेब की सेना में शीर्ष स्तर पर हिन्दुओं का होना इस बात का प्रमाण है कि यह धर्म युद्ध नहीं था, बल्कि सत्ता के लिए संघर्ष था। इसे साम्प्रदायिक ढंग से प्रस्तुत करना इतिहास के तथ्यों से छेड़छाड़ करना है। शिवाजी का दृष्टिकोण कतई साम्प्रदायिक नहीं था। उनमें जरा सी भी साम्प्रदायिकता की भावना नहीं थी । वे दूसरे धर्म के लोगों का तथा दूसरे धर्म की शिक्षाओं का आदर करते थे, दूसरे धर्म के विश्वासों व पूजा पद्धतियों का सम्मान करते थे। इस बात का प्रमाण यह है कि शिवाजी ने अपने जगदीशपुर महल के सामने मस्जिद बनवाई थी, जिसमें वह हररोज पूजा के लिए जाता था। शिवाजी के मन में दूसरे धर्म के प्रति कितना आदर था इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वे दूसरे धर्मों के संतों और फकीरों को कितना आदर देते थे । 'हजरत बाबा याकूत बहुत थोरवाले' को उन्होंनें जीवन पेंशन दे रखी थी। गुजरात के फादर एम्ब्रोस जिनका चर्च खतरे में था उनकी भी शिवाजी ने मदद की थी । शिवाजी को किसी धर्म के प्रति कोई नफरत नहीं थी। एक बार उन्होंनें लूट के माल में कुरान की प्रति देखी तो वे अपने सिपाहियों पर नाराज हो गए। आखिरकार कुरान की प्रति उसके घर पहुंचा दी गई जिसके घर से लेकर आए थे। उनके मन में स्त्रियों के प्रति बहुत सम्मान था। एक बार उसके सिपाही कल्याण के सुबेदार का घर लूटकर, लूट के माल के साथ उसकी बेटी भी ले आए। शिवाजी को इस पर बहुत पछतावा हुआ और उस युवती को उन्होनें इज्जत के साथ डोली में बिठाकर उसके घर भेज दिया। जैसे एक भाई बहन की विदाई में उपहार देता है उसी तरह शिवाजी ने युवती को उपहार में दो गांव दिए । शिवाजी ने अपने सिपाहियों को सख्त आदेश दे रखे थे कि लड़ाई या लूट के माल में मस्जिद, कुरान और नारी का अपमान नहीं होना चाहिए। साम्प्रदायिकता और इतिहास / 85