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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/११

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साहित्यालाप

लिपि-सृष्टि का प्रादुर्भाव मानना असिद्ध है। इस आपत्ति का उत्तर यह दिया जाता है कि वेद के ब्राह्मण-भाग में जो गाथायें हैं उनमें जगह जगह पर श्रुति के हवाले हैं। प्रसङ्गानुकूल जिन श्रुतियों का उल्लेख किया गया है उनके सिर्फ आरम्भ के दो चार शब्द लिख कर उनका स्मरण दिलाया गया है। यदि उस समय ब्राह्मण-ग्रन्थ शृङ्खलाबद्ध होकर न लिखे गये होते, तो इस प्रकार गाथाओं के बीच में ऋचाओं के आदि शब्द दे कर उनका हवाला न दिया जाता। वेद का संहिता-भाग मी उस समय ज़रूर लिपिबद्ध हो गया होगा, क्योंकि जो ग्रन्थ लिखित और विशेष रूप से प्रचलित नहीं होता उसके वाक्य दूसरे ग्रन्थों में यथानियम नहीं उद्धृत किये जा सकते । फिर वेदों में जितनी पंक्तियां दुबारा हैं, उनकी गिनती शतपथ ब्राह्मण के दसवें काण्ड में है। यदि वेद उस समय लिखित न होते तो उनकी पंक्तियों की गिनती कैसे हो सकती?

और, यदि, ब्राह्मण या संहिता में लिपि-विषयक कोई प्रमाण न भी पाया जाय तो क्या उससे यह सिद्ध हो सकता है कि उस समय लिखने की कला उत्पन्न ही न हुई थी ? कोई भी नया आविष्कार होने पर उसका प्रचार होने में देर लगती है। सम्भव है, संहिताकाल ही में लिखने की कला लोगों को मालूम हो गई हो पर उन्होंने वेदादि महत्वपूर्ण ग्रन्थों को लिखना न शुरू किया हो। उन्हें वे परम्परा की प्रथा के अनुसार सुनकर ही याद करते रहे हों । जब तक किसी बात के