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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/३८

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देशव्यापक भाषा


अक्छे अच्छे कवि, लेखक, धार्मिक, तत्ववेत्ता, वक्ता, और विज्ञानी आदि विद्वानों की आवश्यकता होती है। क्योंकि बिना इनके देश में देशत्व नहीं आ सकता। करोड़ों स्वाभिमानहीन, निरुद्यमी, मूर्ख और अशिक्षित लोगों की अपेक्षा दस पाँच विद्वान, चतुर, देशभक्त और आत्माभिमान पूर्ण पुरुषों ही से देश में अधिक सजीवता आती है। ऐसे ही पुरुषों को अपने देश का देशत्व सजीव रखने का प्रयत्न, उचित उपायों द्वारा, करना चाहिए।

देश चेतनता और एका बना रखने किंवा उत्पन्न करने के लिए परस्पर प्रीति और सहानुभूति की बड़ी आवश्यकता होती है। देशप्रीति को जागृत और सहानुभूति को उत्पन्न करने के लिए, जैसा कि ऊपर कहा गया है, एक भाषा और एक धर्म होने की बड़ी जरूरत है। इस विस्तीर्ण भारतवर्ष में एक धर्म होने की आशा नहीं। सबका एक धर्म हो जाना बिलकुल असम्भव जान पड़ता है। हिन्दू, मुसल्मान, पारसी, क्रिश्चियन, जैन आदि धर्मों को मेट कर एक धर्म कर देना महा कठिन काम है। इस समय तो ऐसा ही जान पड़ता है। आगे की ईश्वर जाने । परन्तु सबकी भाषा एक हो जाना असम्भव नहीं। भाषा एक हो सकती है। उसके एक हो जाने से देश का परम कल्याण हो सकता है। अतएव धर्म की बात छोड़ कर भाषा ही की बात हम इस लेख में कहना चाहते हैं।

इस देश के उत्तर में दो भाषायें प्रधान हैं-हिन्दी और