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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/६

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विशेषता प्रदान कर दी। इस पत्रिका ने हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि के प्रचार और उन्नयन के लिए कहां तक चेष्टा की, यह बात, इस संग्रह में सन्निविष्ट लेखों से अच्छी तरह ज्ञात हो सकती है। इसके कुछ लेख बहुत पुराने हैं। उनका प्रकाशन हुए बीस पच्चीस तक वर्ष हो गये। उनसे पाठकों को मालूम हो जायगा कि यह क्षुद्र जन अपनी भाषा और अपनी लिपि के लिए, अपनी अत्यल्प शक्ति के अनुसार, कहां तक और कितना प्रयत्नशील रहा है। वह अल्पज्ञ है, तथापि बहुज्ञों को इस ओर उदासीन सा देख, अपनी अत्यल्प शक्ति के अनुसार, उसने अपने कर्तव्य-पालन में त्रुटि नहीं होने दी। उसने अपनी भाषा और अपनी लिपि के गुणों का भी कीर्तन किया, उनके प्रचार से होनेवाले लाभों का भी निदर्शन किया और यथाशक्ति विरोधियों की उक्तियों का खण्डन भी किया। उसे यह देखकर बहुत सन्तोष हो रहा है कि उसकी आरम्भिक चेष्टायें फलवती हुईं। उससे अधिक योग्य, अधिक कार्य्यकुशल और अधिक शिक्षित सज्जनों ने भी उसके स्वीकृत क्षेत्र में पदार्पण करके उसे विशेष परिष्कृत कर दिया। इन्हीं सुकृती जनों के परिश्रम का यह फल है जो इस समय, अपनी भाषा में, अनेक उत्तमोत्तम समाचारपत्र और सामयिक पुस्तकें निकल रही हैं, भिन्न भिन्न विषयों की अनेक उपादेय पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं और अनेक अध्यवसायशील पुरुष पुस्तकप्रकाशन का व्यवसाय करके बहुत कुछ धनोपार्जन कर रहे हैं।