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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/६२

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देशव्यापक भाषा


सकता है। ऐसा करने से किसीको कुछ भी हानि न उठानी पड़ेगी। एक लिपि का प्रचार होने (लिपि नहीं, भाषा का भी प्रचार होने ) के सैकड़ों वर्ष आगे तक लोग अपनी मूल भाषा को न भूलेंगे ; और सम्भव है उनकी मूल भाषा सदा बनी ही रहे। इस दशा में पुरानी पुस्तकें, जो हिन्दी लिपि में छपेंगी, उनको पढ़ने और समझने में कोई कठिनता न उपस्थित होगी। यही बात दस्तावेजों के विषय में भी समान रूप से कही जा सकती है। पुराने कागजात जैसे हैं वैसे ही रहें। हां, नये देवनागरी लिपि में लिखे जायें। यदि ऐसे महान् देशकार्य में किसीको थोड़ी सी हानि भी उठानी पड़े तो कोई बड़ी बात नहीं। ऐसे अनेक महात्मा हो गये हैं, और अब भी हैं, जिन्होंने देशहित के लिए अखण्ड परिश्रम किया है; जिन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति दे डाली है; जिन्होंने अपना सर्वस्व समर्पण कर दिया है, जिन्होंने अपने प्राणों तक की भी परवा नहीं की!

इस काम के लिए आत्मावलम्बन दरकार है ; दृढ़ निश्चय दरकार है ; दीर्घ प्रयत्न दरकार है। परावलम्बन से काम नहीं चल सकता। परावलम्बन से सफलता की बहुत ही‌ कम आशा होती है । गवर्नमेंट का मुंह ताकने की अपेक्षा स्वयं कुछ करके दिखलाना चाहिए, गवर्नमेंट से सहायता माँगने के पहले भिन्न भिन्न भाषाओं के दो चार समाचारपत्रों को हिन्दी लिपि में निकलना चाहिए। सर्वसाधारण के खर्च से चलने- वाले स्कूलों में हिन्दी लिपि और, तदनन्तर, हिन्दी भाषा का