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पृष्ठ:साहित्य का उद्देश्य.djvu/२४६

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हंस के जन्म पर

वह अनुभव तुम्हें इतना हितकर होगा, जितना पुस्तक-ज्ञान उम्र-भर भी नहीं हो सकता । तुम मर्द हो जाओंगे।

सरल जीवन स्वाधीनता के संग्राम की तैयारी हो

लेकिन जब हम अपने छात्रों का विलास-प्रेम देखते हैं, तो हमे उनके विषय में बड़ी चिन्ता होती है । वह रोज अपनी जरूरतें बढ़ाते जाते हैं, विदेशी चीजों की चमक-दमक ने उन्हे अपना गुलाम बना लिया है। वे चाय और काफी के, साबुन और सेट के और न जाने कितनी अल्लम- गल्लम चीजों के दास हो गये हैं। बाजार में चले जाइए, आप युवको और युवतियों को शौक और विलास की चीजें खरीदने में रत पाएँगे। वह यह समझ रहे हैं, कि विलास की चीजे बढ़ा लेने से ही जीवन का आदर्श ऊँचा हो जाता है । युनिवर्सिटियो में अपने अध्यापकों का विलास- प्रेम देखकर यदि उन्हे ऐसा विचार होता है, तो उनका दोष नहीं । यहाँ तो आवें का आवाँ बिगड़ा हुआ है । सादे और सरल जीवन से उन्हें घृणा सी होती है। अगर उनका कोई सहपाठी सीधा-सादा हो, तो वे उसकी हँसी उड़ाते हैं, उस पर तालियाँ बजाते हैं । अंग्रेज अगर इन चीजों के शौकीन हैं, तो इसलिए कि इस तरह वे अपने देश के व्यव- साय की मदद करते है । फिर, वह सम्पन्न हैं, हमारी और उनकी बराबरी ही क्या ? उन्होंने फसल काट ली है, अब मजे से बैठे खा रहे हैं। हमने तो अभी फ़सल बोई भी नहीं, हम अगर उनकी नकल करे, तो इसके सिवा कि बीज खा डालें, और क्या कर सकते हैं। और यही हो रहा है। जिस गाढ़ी कमाई को देशी व्यवसाय और धंधे में खर्च होना चाहिए था, वह यूरोप चली जा रही है और हम उन आदतों के गुलाम होकर अपना भविष्य खाक में मिला रहे हैं । शौक और सिगार के बन्दे जिन्दगी में कभी स्वाधीनता का अनुभव कर सकते हैं, हमे इसमे सन्देह है । विद्या- लय से निकलते ही उन्हें नौकरी चाहिए-इसके लिये वह हर तरह की खुशामद और नकघिसनी करने के लिये तैयार है । नौकरी मिल गई, तो उन्हे अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये ऊपरी आमदनी की फिक्र