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पृष्ठ:साहित्य का उद्देश्य.djvu/८६

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जड़वाद और आत्मवाद
 

विद्वानों की दुनिया में आजकल आस्तिक और नास्तिक का पुराना झगड़ा फिर उठ खड़ा हुआ है। यह झगड़ा कभी शान्ति होने वाला तो है नहीं, हाँ, उसके रूप बदलते रहते हैं। आज के पचास साल पहले, जब विज्ञान ने इतनी उन्नति न की थी, और संसार में बिजली और भाप और भाँति भाँति के यन्त्रों की सृष्टि होने लगी, तो स्वभावतः मनुष्य को अपने बल और बुद्धि पर गर्व होने लगा, और अनन्त से जो अनीश्वरवाद या जड़वाद चला आ रहा है, उसे बहुत कुछ पुष्टि मिली। विद्वानों ने हमेशा ईश्वर के अस्तित्व में सन्देह किया है। जब प्रकृति का कोई रहस्य उनकी छोटी सी अक्ल के सुलझाये नहीं सुलझता तो उन्हें ईश्वर की याद आती और ज्यों ही विज्ञान ने एक कदम और आगे बढ़ाया और उस रहस्य को सुलझा दिया, तो विद्वानों का अभिमानी मन तुरन्त ईश्वर से बगावत कर बैठता है, या उनकी वह पुरानी बगावत फिर ताजी हो जाती है। जब भाप और बिजली जैसी चीजें आदमी ने बना डालीं, तो वह यह क्यों न समझ ले कि यह छोटी सी पृथ्वी और सूर्य आदि भी इतने महान विषय नहीं है, जिनके लिए ईश्वर की जरूरत माननी पड़े। जड़वाद ने तुरन्त दिमाग लड़ाया और सृष्टि की समस्य हल कर डाली। परमाणुवाद का झंडा लहराने लगा। प्रायः सभी विद्वानों ने उस झंडे के सामने सिर झुका दिया।

लेकिन इधर विज्ञान ने जो अक्ल को चौंधिया देने वाली उन्नति की है, और मनुष्य को मालूम हुआ है कि यह नए ईश्वर के करिश्मे

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