सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१०५
समाचार-पत्रों का विराट् रूप


२९—पताका आपकी हिन्दुस्तान की हित-चिन्ता, नक्कारा आपका अज्ञान की गहरी नींद में सोये हुओं को जगाना, पराक्रम आपका सनातन-धर्म्म की साफ सड़क से भटके हुओ को रास्ता बतलाना है।

३०—ऐसे आपके इस व्यापक विराट् रूप का हम त्रिकाल ध्यान करते हैं। आपकी तीन त्रिगुणात्म मूर्तियाँ हैं—प्रत्याहिक, साप्ताहिक और पाक्षिक। मासिक और त्रैमासिक आपके लीलावतार हैं। ऐसे लीलामय आपके विकट विराट रूप को छोड़ कर हम—"कस्मै देवाय हविषा विधेम?"

स्तावकास्तव चतुर्मुखादयो
भाधुकाश्च भगवन् भवादयः।
सेवकाः शतमखादयः सुरा
वृत्तपत्र! यदि, के तदा वयम्?

[नवम्बर, १९०४