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पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/१४३

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खुदाबख्श-लाइब्रेरी

हिज़री की लिखी हुई है। ६१२ पृष्ठ पर अली मरदन ही के हाथ का एक जेल है, जिसमें लिखा है कि यह पुस्तक मैंने बादशाह को भेंट में दी। एक कापी शाहिन्शाहनामे की है। उसमें रूम के सुलतान मुहम्मद तीसरे का चरित, पद्य में है। इस पुस्तक की दूसरी कापी आज तक और कहीं नहीं मिली। यह कापी शायद खुद सुल्तान के लिए कुस्तुनतुनिया ही में लिखी गई थी। किसी प्रकार यह देहली पहुँची और शाही पुस्तकालय में रखी गई। इस पर तैमूरी घराने के कितने ही बादशाहों और अमीरों की मुहरें और दस्तखत हैं। शाहेजहाँ की बड़ी लड़की, जहानआरा बेगम, की भी मुहर इस पुस्तक पर है। यह लड़की विदुषी थी। इसकी मुहर बहुत कम देखने में आई है। हाफिज के दीवान की कई कापियाँ, इस पुस्तक में, हैं। उनमें एक कापी बड़े महत्व की है। उस पर हुमायूँ और जहाँगीर के हाथ से लिखे गये कितने ही टिप्पण, हाशिये पर हैं। तुलसीदास की रामायण की तरह दीवानेहाफिज से भी शकुन या प्रश्न पूछे जाते हैं। यथाविधि पुस्तक खोलकर उस शेर का मतलब देखा जाता है जो खोलने पर निकलता है! उसी के अनुसार प्रश्न करने वाला अपने प्रश्न का फलाफल का उल्लेख; पूर्वोक्त दोनों बादशाहों ने इस कापी के हाशिये पर अपने हाथ से किया है।

कुरान की तो न मालूम कितनी कापियाँ इस पुस्तकालय में हैं। वे इतनी सुन्दर हैं और उनकी लिपि इतनी मनोहर है कि देखकर चित्त प्रसन्न हो जाता है।

खान-खाना अब्दुर्रहीम ने यूसुफ जूलेखा की एक कापी लिखाई थी। उसके लिखाने में उसने एक हज़ार मुहरें खर्च की थीं। यह कापी उसने जहाँगीर बादशाह की नज़र की थी। यही कापी बाँकीपुर के इस पुस्तकागार की शोभा बढ़ा रही। यह ९३० हिजरी की लिखी