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पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/४४

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साहित्य-सीकर


इस विवेचना से सिद्ध है कि संस्कृत साहित्य कितने ही आश्चर्यों से भरा हुआ है। उसके विस्तार, उसकी प्राचीनता, उसकी पुष्टि बहुत ही कुतूहल जनक है। ऐसे साहित्य का अध्ययन करने वालों के मन पर क्या कुछ भी असर नहीं पड़ सकता? जरूर पड़ सकता है। वह अध्ययनकर्त्ता के शील-स्वभाव को एकदम बदल सकता है। बुद्धि सम्बन्धिनी शिक्षा प्राप्त करने में इस साहित्य के अध्ययन से बढ़ कर अन्य साधन नहीं। खेद है, ऐसे उपयोगी, ऐसे परिपूर्ण, ऐसे प्रभावशाली साहित्य का बहुत ही कम सम्मान आजतक लोगों ने किया है। पर, अब, हम इसकी महत्ता समझने लगे हैं। इससे बहुत कुछ सन्तोष होता है।

[अप्रैल, १९१६

 


४—सर विलियम जोन्स ने कैसे संस्कृत सीखी

सर विलियम जोन्स संस्कृत के बहुत प्रसिद्ध पंडित हो गये हैं। उन्होंने बंगाल की एशियाटिक सोसायटी की नींव डाली थी। यद्यपि उनके पहले भी कई योरप निवासियों ने इस देश में आकर संस्कृत की थोड़ी बहुत शिक्षा प्राप्त की थी, तथापि सर विलियम की तरह बड़ी बड़ी कठिनाइयों को झेलकर संस्कृत का यथेष्ट ज्ञान और किसी ने उनके पहले नहीं प्राप्त किया था। एशियाटिक सोसायटी की स्थापना करके उन्होंने बहुत बड़ा काम किया। इस सोसायटी की बदौलत पौर्वात्य भाषाओं के अनेक अलभ्य ग्रंथ आज तक प्रकाशित हो चुके हैं और अनेक अश्रुतपूर्व विद्या और कला आदि के विषय की बातें मालूम हुई हैं। यदि सर विलियम जोन्स संस्कृत सीख कर संस्कृत के ग्रन्थों का अनुवाद अँगरेजी में न प्रकाशित करते तो शायद संस्कृत