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पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/७४

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साहित्य-सीकर

उदाहरण में शहर शब्द के वाच्यार्थ, प्रदेश-विशेष, का सर्वथा त्याग होकर सिर्फ उससे सम्बन्ध रखनेवाले आदमियों का अर्थ लिया गया। इसलिये यह जहत्स्वार्था हुई। जहाँ लक्ष्यार्थ के साथ वाच्यार्थ का भी ग्रहण होता है वहाँ अजहत्स्वार्था होती है। जैसे "यहाँ पर दही रक्खा है। बिल्ली न आने पावे।" इस उदाहरण में बिल्ली शब्द से एक प्राणि-विशेष से भी मतलब है और उसके सिवा कुत्ता या कोवा इत्यादि दही खाने वाले और भी प्राणियों से मतलब है, क्योंकि कहने वाले की यह इच्छा नहीं कि सिर्फ बिल्ली ही दही के पास न आने पावे; और प्राणी आवे तो आने दो। अतएव यहाँ पर अजहत्स्वार्था नामक सम्बन्ध-निबन्धना हुई।

कोई कोई, विशेष करके वेदान्तो लोग, जहदजहत्स्वार्था नामक भी लक्षणा मानते हैं। उनमें वाच्यार्थ के कुछ अंश का त्याग होकर अशिष्ट अंश लक्ष्यार्थ के साथ अपेक्षित अर्थ का बोध कराता है। यह बहुत सूक्ष्म और क्लिष्ट-कल्पना है। इसके उदाहरण की जरूरत नहीं।

प्र॰—जैसे शब्द में व्जञ्जकता होती है वैसे ही क्या अर्थ में भी होती है?

उ॰—हाँ, कभी कभी अर्थ में भी व्यञ्जकता होती है। जैसे "अरे मार डाला" इस वाक्य से यह अर्थ निकलता है कि बचाने के लिए कोई दौड़ो अथवा—"अरे दस बज गये!" यह कहने से सूचित होता है कि स्कूल या दफ़्तर इत्यादि जाने का समय हो गया।

प्र॰—लक्षणा के क्या और भी कोई प्रकार है?

उ॰—हैं। लक्षित-लक्षणा और विपरीत-लक्षणा इत्यादि और भी इसके कई प्रकार हैं। उदाहरण—"द्विरेफ" शब्द से भौंरे के अर्थ का बोध होने से लक्षित-लक्षिणा हुई। अर्थात् जिसमें दो रेफ हैं, ऐसे द्विरेफ शब्द ने भौंरे को लक्षित करके उसके अर्थ का बोध