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पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/८१

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हिन्दी शब्दों के रूपान्तर


म॰—'कहलाया' में 'या' है। परन्तु कुछ लोग उसके रूप का खयाल न करके 'कहलाएगा' लिखते हैं, 'कहलायेगा' नहीं। एकारयुक्त रूप तो सरासर गलत मालूम होता है।

दे॰—जो स्वर और व्यञ्जन का भेद नहीं जानता वह सही को गलत और गलत को सही यदि कह दे तो क्या आश्चर्य है?

ग—मैं अपनी कमज़ोरी समझ गया। अब उस बात की याद दिला कर आप क्यों मुझे लज्जित करते हैं। मेरा बनाया हुआ नियम अवश्य ही सदोष है। यदि उसके अनुसार शब्दों के रूपान्तर किये जायँगे तो पहले तो हिन्दी में व्यञ्जनान्त शब्द ही बहुत थोड़े मिलेंगे और जो मिलेंगे भी उनके व्यञ्जनान्त रूपान्तर ही न हो सकेंगे।

दे॰—मुझे यह जानकर बहुत सन्तोष हुआ कि आपको अपने बनाये नियम की कमजोरी मालूम हो गई। अच्छा, सुनिये। 'कहलाया' का 'कहलाएगा' पर रत्ती भर भी जोर नहीं—'कहलाया' की कुछ भी सत्ता 'कहलाएगा' पर नहीं। दोनों 'कहलाना' क्रिया के भिन्न-कालवाची रूपान्तर हैं। और कहलाना में 'या' या 'य' की गन्ध नहीं। 'कहलाया' में या उच्चारण के अनुरूप है। आप चाहें तो उसका बहुवचन 'कहलायें', लिख सकते हैं। पर 'कहलाएगा' के 'ए' की जगह 'ये' को दे डालने का आपको क्या अधिकार? 'कहलायेगा' अन्यकालवाची एक पृथक् रूप है। उस पर यदि किसी की कुछ सत्ता है तो 'कहलाना' की है, 'कहलाया' की नहीं। जो काम 'ए' से हो जाता है उसके लिये 'य्' को भी पकड़ना कहाँ का न्याय है।

ग॰—संस्कृत में तो इस तरह का गदर नहीं। वहाँ तो जो वर्ण किसी शब्द के एक रूप में रहता है वही अन्य रूपों में भी रहता है।

दे॰—संस्कृत का आप नाम न लें। बात हिन्दी की हो रही है, संस्कृत