सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रथम अध्याय ३ इसमें एक तूबा और एक डांड होता है । सूबे में तार लगाने का एक स्थान होता है जिसे लंगोट कहते हैं। इसी में अटका कर तारों को घोड़ी ( यह प्रायः ऊंट की हड्डी की बनी होती है, और इसी के ऊपर तार रखे जाते हैं ) के ऊपर होकर दूसरी ओर खूटियों में बांध देते हैं । डांड पर जो पीतल के परदे बंधे रहते हैं, कोई-कोई उन्हें सुन्दरी भी कहते हैं। परन्तु आज उन्हें परदे ही कहा जाता है । वोल चाल- मितार की बोल-चाल उसकी बनावट पर तो निर्भर है ही, परन्तु अच्छी बोल चाल का सितार केवल दो ही बातों पर अधिक निर्भर है। नं०१ सितार की जवारी पर और नं. २ तार के अच्छेपन पर। हो सकता है कि आप 'जवारी' और तार के 'अच्छेपन' को सुनकर इस भ्रम में पड़ जायें किं यह दोनों वस्तुएँ क्या बला हैं। किन्तु आप सचमुच सितार के प्रेमी हैं तो आपने अपने सितार की जवारी को खुलवाने के लिये अनेक बार दस-दस रुपये तक दिये होंगे। और, यदि मैं यह कहूं कि अनेक सितार बनाने वाले जवारी को खोलना तक भी नहीं जानते तो अनुचित नहीं होगा। जो विद्यार्थी सितार की जवारी स्वयं खोल सकते हैं, उनके मितार की ध्वनि सदैव उत्तम बनी रहेगी। जवारो के न खुलने पर, अथवा उसके कुण्ठित रहने पर, तार की ध्वनि ठम' और दबी- दवी सी निकलती है। जवारी खोलना- तो आइये आज आपको इसका अर्थ और इसे खोलने की युक्ति बतलादें। ध्यान रखिये कि यह वह गुप्त भेद है जो बड़े परिश्रम के उपरान्त मुझे प्राप हुअा है। इस काम के करने वाले, अपना सन्तान के अतिरिक्त इस भेद को किसी अन्य को, किसी भी मूल्य पर नहीं बतलाते। हां, तो जवारी के अर्थ हैं 'टिकाव', अर्थात् घोड़ी ( Bridge ) पर तार को किस प्रकार टिकायें ( रखें ) कि वह साफ और लम्बे सांस की ध्वनि दे। देखिये वॉयलिन, सारंगी, इसराज व सरोद आदि वाद्यों में तार केवल घोड़ी के नुकीले किनारे पर रखा रहता है। इन वाद्यों में घोड़ी का आकार सादा गुलाई लिये हुए होता है। जैसे इन वाद्यों में तार इस घोड़ी पर केवल रखा ही रहता है । परन्तु इसके विपरीत वीणा अथवा सितार में तार को एक चौड़ी और चपटी सतह के ऊपर रखा जाता है। यह वस्तु घोड़ी कहाती है। यदि हम इस घोड़ी के उस स्थान को जो इकतार-चपटा-सा दिखाई दे रहा है, इमी प्रकार बेमालूम सा गोल करदें तो हमारा तार भी इतनी बड़ी घोड़ी पर, अथवा यूं कहो कि इतनी बड़ी सतह पर केवल एक स्थान पर ही रखा रहेगा । अत: जवारो खोलने के लिये यह आवश्यक है कि रेगमाल ( Sand Paper ) अथवा नये रेजर-प्लेड से जवारी को (घोड़ी को) इस प्रकार रगड़ें कि उसकी सतह आकार, बेमालूम सा बन जाये। प्रकार का इस का