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पृष्ठ:सुखशर्वरी.djvu/५३

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उपन्यास e किनारे एक कात्यायनी देवी की मूर्ति स्थापित है, उसके पदतल में एक अभागा शृङलाबद्ध औंधा पड़ा है, और देवी के सामने आसान मारे कापालिक ध्यान में मग्न है !' उदासीन बंदी को चोन्हते. थे, सो उसकी भयानक विपद देखकर उनका मन भर आया। फिर धीरे ले उस बंदी को गोद में उठा कर वहांसे के खसक दिए और कापालिक को उन्होंने खूब ही धोखा दिया। सरला,-"भई! उदासीन कौन? वे कहां हैं ? अहा! उदासीन बड़े उपकारी हैं। क्या वे बंदी मेरे भैया ही हैं! हां फिर?" अनाथिनी,-"फिर उदासीन उन्हें लेकर जाल से बाहर होते थे कि सहसा कोई बंदी को उनसे छीनकर अवश्य होगया!" सरला,-'कौन, कौन ?" अनाथिनी,-"वे दो डांक थे" सरला,-वे दोनों कौन थे ? और क्यों भैया को हर ले गए?" अनाधिनी,-"उदासीन से विदित हुआ कि, 'उन दोनों में से एक मुसटण्डा रामशङ्कर और दूसरा मजिष्ट्रट को घायल करनेवाला फकीर था। साला,-"रामशङ्कर, क्या सर्वनाश ! वह तो बाबा का जात. शत्रु है ! वह यहां कैसे आया ?" अनाथिनी,-'जबसे मजिष्ट्रट घायल हुए हैं, तबसे रामशङ्कर और वह फकीर जङ्गलों में छिपे डोलते हैं !" सरला,-"वे दानों भैया को कहां ले गए ? क्या किया ?" अनाथिनी,-"उन दुष्टों ने उनका दोनों हाथ-पांव बांध कर सुबदनां के पान्थनिवास में रक्खा था। पीछे हमलोग वहां गई थीं। ___ सरला,-"ठीक कल संझा को तीन आदमी वहां आकर तीन कोठरियों में टिके थे, यह तो सुना था, और देखो भी था कि एक जन का हाथ पैर बंधा था। पर अंधेरे के कारण उसे अच्छी तरह नहीं देख सकी। हाय ! उन्हीं दुष्टों ने पान्थनिवास में आग लगाई थी ?" अनाथिनी,-"हां उन्हीं दुष्टों ने तुम्हारे भाई के सर्वनाश करने के लिये पान्थनिवास में आग लगाई थी।" सरला,-"हां, भाई ! अब भैया कहां है ?"