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पृष्ठ:सेवासदन.djvu/२९७

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सेवासदन
 

सुमन ने उदास होकर कहा, देर तो क्या होती थी, वह यहाँ आना ही नही चाहते थे। मेरा अभाग्य,दुख केवल यह है कि जिस आश्रम के वह स्वयं जन्मदाता है, उससे मेरे कारण उन्हें इतनी घृणा है। मेरी हृदय से अभिलाषा थी कि एक बार तुम और वह दोनो यहाँ आते। आधी तो आज पूरी हुई,शेष भी कभी-न-कभी पूरी होगी। वह मेरे उद्वारका दिन होगा।

यह कहकर सुमनने सुभद्राको आश्रम दिखाना शुरू किया। भवनमे पाँच बड़े कमरे थे। पहले कमरेमें लगभग तीस बालिकाएँ बैठी हुई कुछ पढ़ रही थीं। उनकी अवस्था १२ वर्षसे १५ वर्ष तक थी ।अध्यापिकाने सुभद्रा को देखते ही आकर उससे हाथ मिलाया। सुमनने दोनोंका परिचय कराया। सुभद्राको यह सुनकर बड़ा आशचर्य आ कि वह महिला मिस्टर रुस्तम भाई व बैरिस्टरकी सुयोग्य पत्नी है। नित्य दो घंटेके लिए आश्रम में आकर इन युवतियोंको पढाया करती थी।

दूसरे कमरेमें भी इतनी ही कन्याएँ थी। उनकी अवस्था ८ से लेकर १२ वर्ष तक थी। उनमें कोई कपड़े काटती थी,कोई सीती थी और कोई अपने पासवाली लड़कीको चिकोटी काटती थी। यहां कोई अध्यापिका न थी। एक बूढा दरजी काम कर रहा था। सुमनने कन्याओके तैयार किए हुए कुरते, जाकेट आदि सुभद्राको दिखाये।

तीसरे कमरेमें १५-२० छोटी-छोटी बालिकाएँ थीं, कोई ५ वर्षसे अधिककी न थी उनमें कोई गुडिया खेलती थी, कोई दीवारपर लटकती हुई तस्वीरे देखती थी। सुमन आप ही इस कक्षाकी अध्यापिका थी।

सुभद्रा यहाँ सामनेवाले बगीचे में आकर इन्ही लड़कियों के लगाये हुए फूल पत्ते देखने लगी। कई कन्याएँ वहाँ आलू गोभी की क्या पानी दे रही थीं। उन्होंने सुभद्रा को सुन्दर फूलोका एक गुलदस्ता भेंट किया। भोजनालायमें कई कन्याएँ बैठी भोजन कर रही थीं। सुमन ने सुभद्रा को इन कन्याओं के बनाये हुए अचार, मुरब्बे आदि दिखाए।

सुभद्राको यहाँका सुप्रवन्ध, शान्ति और कन्याओंका शील स्वभाव