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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१०९

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कूटमन्त्र उसी रात में, उसी नगर में एक दूसरा ही कार्य हो रहा था। अनहिल्ल पाटन के एक एकान्त भाग में एक बहुत पुरानी भग्न अट्टालिका थी। अट्टालिका बिलकुल सूनी और बेमरम्मत थी। यह नहीं कहा जा सकता था कि इसमें किसी मनुष्य का निवास है। अट्टालिका का मुख्य द्वार सदैव बन्द रहता था। उसके आस-पास घास-फूस उग आई थी और स्पष्ट था कि मुद्दत से यह द्वार खुला ही नहीं था। परन्तु वास्तव में बात ऐसी न थी। इस समय इस अट्टालिका में चार व्यक्ति उपस्थित थे। जिस कक्ष में ये लोग बैठे थे, वह एक प्रकार से सुसज्जित था। दीपक का प्रकाश उस कक्ष में फैल रहा था। कक्ष के बाहर एक सशस्त्र योद्धा सावधानी से पहरा दे रहा था। चारों मनुष्य धीरे-धीरे बातचीत कर रहे थे। परन्तु उनकी चेष्टा से यह प्रकट था कि वे किसी व्यक्ति के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अर्द्धरात्रि व्यतीत हो गई थी। परन्तु ये चारों व्यक्ति मनोयोग से अपनी बातचीत में संलग्न थे। इनमें एक तरुण व्यक्ति श्याम वर्ण, तेजस्वी, नीलकान्त मणि की आभा धारण किए था। उसकी बड़ी-बड़ी काली चमकदार आँखें उसकी बुद्धिमत्ता और साहस को प्रकट करती थीं। उस पुरुष का अंग गठित, नाक नुकीली और कण्ठ स्वर गम्भीर घोषयुक्त था। उस वीर पुरुष को पाठक इस उपन्यास के प्रारम्भ ही में देख चुके हैं। यह गुर्जर का प्रसिद्ध बाणबली युवराज भीमदेव चालुक्य था। अभी इसकी आयु केवल छब्बीस वर्ष की थी। परन्तु अपने गाम्भीर्य, तेज और वैशिष्ट्य से वह हज़ारों मनुष्यों के शीर्ष स्थान पर सुशोभित होता था। दूसरा एक प्रौढ़ अवस्था का गौरवर्ण दीर्घाकार और तेजस्वी राजसी व्यक्ति था। इसकी बड़ी-बड़ी राजसी आँखों में लाल डोरे, इसकी ऐश्वर्य-भावना, प्रताप और विलास की सामर्थ्य को प्रकट कर रहे थे। यह एक दृढ़-निश्चयी, वचन-प्रतिपालक, स्थिरबुद्धि और वीर पुरुष था। यह गुर्जरेश्वर चामुण्डराय का ज्येष्ठ पुत्र वल्लभदेव था। तीसरा पुरुष एक तेजस्वी तरुण था। इस पुरुष की आकृति में सौन्दर्य, शौर्य, दृढ़ता और भावुकता का अद्भुत सम्मिश्रण था। यह सादा श्वेत वस्त्र पहने, एक तलवार सामने रक्खे चुपचाप वार्तालाप में योग दे रहा था। यही पुरुष आबू के प्रसिद्ध मन्दिर का निर्माता, गुर्जर-मन्त्री विमलदेव था। चौथा पुरुष एक कृशतनु ब्राह्मण था। उसकी मुखाकृति विशेष आकर्षक न थी, परन्तु उसकी प्रत्येक बात से विचारशीलता टपकती थी। वह बहुत धीरे-धीरे नपी-तुली बात कहता था। यह अधेड़ अवस्था का पुरुष ‘गुजरात का चाणक्य कहलाता था। इसका नाम चण्ड शर्मा था। और यह गुर्जर राज्य का महासन्धि वैग्राहिक था। भीमदेव बाणबली ने कहा, "काका, महाराज की जो दशा है, उससे तो अब कुछ आशा नहीं है। अब गुजरात की मानरक्षा के लिए आप ही को कुछ करना होगा। इस समय तो हम भीतरी और बाहरी शत्रुओं से घिरे हुए हैं। अब यदि हम महाराज पर ही निर्भर रहें तो बस हो चुका।"