सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पाए।" “अब रही सिन्धुपति हम्मुकराज की बात, वह सीधी शमशेर से बात करता है। यह है महाराज, पाटन के दिग्पालों की कथा।" "अब पाटन की कथा कहो दामो महता।" “महाराज, चामुण्डराय के तो वही रंग-ढंग हैं। आपके विरुद्ध यह षड्यन्त्र तो हो ही रहा है। और महाराज ने आपको बन्दी करने का आदेशा दे दिया है। भावी आपत्ति से वे सर्वथा बेखबर हैं। उधर रनवास में षड्यन्त्र चल रहे हैं।" "सबसे प्रथम महाराज की प्राण-रक्षा तो होनी ही चाहिए दामो,” युवराज वल्लभदेव ने व्यग्र भाव से कहा। "तो महाराज, आप आज्ञा दीजिए कि महारानी दुर्लभदेवी को बन्दी कर लिया जाए।" “विमल और तुम, जैसा ठीक समझो, उसी भाँति महाराज की प्राण-रक्षा की व्यवस्था करो। परन्तु यह ध्यान रखो कि राजपरिवार की बदनामी सर्वसाधारण में न होने "तो महाराज, आप निश्चिन्त रहें। इस षड्यन्त्र को विफल करने का प्रयत्न मैं कर लूँगा। परन्तु महामन्त्री वीकणशाह की जिम्मेवारी विमलदेवशाह अपने पर लें तो ठीक है। जैसे आप पाटन के भावी महाराज हैं, वैसे विमलदेवशाह पाटन के भावी महामन्त्री हैं। यह तो ध्रुव है।" विमलदेव ने कहा, “मैं महामन्त्री से निपट लूँगा महता। अब बाहर की बात कहो- पहले नान्दोल।” "वहाँ मेरा पुरुष गया है, समय पर समाचार मिल जाएगा।" "ठीक! अर्बुद?" "वहाँ से भी आप निश्चिन्त रहें। सब सूचनाएँ मिल जाएँगी।' "तो अब रहे सिन्धुराज और मालवराज भोज। सिन्ध पर अभियान करें कुमार भीमदेव?" “यह ठीक नहीं होगा। पहले अर्बुदेश्वर और नान्दोलराज ठीक हों, तब। तीनों की संयुक्त सैन्य लेकर।" “परन्तु इधर गज़नी का अमीर जो आ रहा है।" “उससे प्रथम ही तीनों दिशाओं में दिग्पालों की दृढ़ स्थापना हो जानी चाहिए।' “परन्तु कैसे? कल्पना कीजिए कि मालवराज भोज और नान्दोलपति अनहिल्लराज तथा धुंधुकराज की त्रिपुटी पाटन पर चढ़े तो?" "तो भारी पड़े।" "फिर गज़नी का दुर्दान्त अमीर है, उसके लिए हमें अपनी शक्तियाँ सुरक्षित रखनी आवश्यक हैं।" "तब तो बहुत कुछ मालवराज के निर्णय पर निर्भर है।" “ऐसा ही है।” "तब मालव पर ही पहले अभियान हो?" "यह क्यों, अभी मालव में चर जाए।" "