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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१२

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व्यापारियों की सावधानी से रक्षा-व्यवस्था करते थे।

प्रतिवर्ष श्रावण की पूर्णिमा और शिवरात्रि के दिन तथा सूर्य और चन्द्रग्रहण के दिन महालय में भारी मेला लगता था, जिसमें हिमालय के उस पार से लेकर लंका तक के यात्री वहाँ आते थे। इन मेलों में पांच से सात लाख तक यात्री एकत्र हो जाते थे। इन महोत्सवों में पट्टन के सात सौ हज्जाम एक क्षण को भी विश्राम नहीं पाते थे। दूर-दूर के राजा-महाराजा अपने-अपने लाव-लश्कर लेकर लम्बी-लम्बी मंजिलें काटते हुए, तथा मार्ग के कठिन परिश्रम को सहन करते हुए, प्रभास पट्टन में आकर जब महालय की छाया में पहुँचते, तो अपने जीवन को धन्य मानते थे। भरतखण्ड भर में यह विश्वास था कि भगवान सोमनाथ के दर्शन बिना किए मनुष्य-जन्म ही निरर्थक है। अनेक मुकुटधारी राजा और श्रीमन्त अपनी-अपनी मानता पूरी करने को सैकड़ों मील पांव-प्यादे चलकर आते थे। इन सब कारणों से उन दिनों पट्टन नगर भारत भर में व्यापार का प्रमुख केन्द्र बन गया था। मालव, हिमाचल, अर्बुद, अंग, बंग, कलिंग के अतिरिक्त अरब, ईरान और अफगानिस्तान तक के व्यापारी तथा बंजारे कीमती माल लेकर इन मेलों के अवसरों पर आकर अच्छी कमाई कर के जाते थे। पट्टन के बाजार उन-उन देशों की हल्की-भारी कीमत वाली जिन्सों और सामग्रियों से पटे रहते थे।