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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१२३

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करना होगा।" “पर अभियोग क्या है?' "महाराज की हत्या का, और गुजरात के राजतन्त्र को उलटने का।" "तो मैं वचन देता हूँ। अभियोग किसके विरुद्ध है? अपराधियों को उपस्थित कर।" दामोदर ने संकेत किया। सेनापति बालुकाराय, रस्सियों से बंधे यति जिनदत्त सूरी को लेकर उपस्थित हुए। राजा आश्चर्यचकित हो दामोदर की ओर देखने लगा। दामोदर ने कहा, “महाराज, मैं बालुकाराय से कुछ प्रश्न करता हूँ, वह सुनिए, परन्तु ठहरिए।" उसने फिर संकेत किया। इस बार देवसेन बालचन्द खवास और महाराज की प्रिय ताम्बूलवाहिनी चम्पकबाला को लेकर आ उपस्थित हुआ। दोनों के हाथ रस्सियों से बंधे थे। अब दामोदर ने बालुकाराय से पूछा- "बालुकाराय, तुमने इस यति को कहाँ पकड़ा?" "नाल्दोल के राजमार्ग पर।" “यह कहाँ जा रहा था?" "नान्दोल।" "तुमने इसे किसलिए पकड़ा?" "दामो महता के आदेश पर।" "इसके पास तुमने क्या पाया?" “एक पत्र और एक मुद्रा।" “ये दोनों वस्तुएँ महाराज के सम्मुख उपस्थित करो।" सेनापति ने दोनों वस्तुएँ तुरन्त महाराज के आगे धर दीं। महाराज महारानी दुर्लभदेवी के हस्ताक्षर और मुद्रा देखकर अचरज में डूब गए। अब महता ने देवसेन से पूछा- "देवसेन, इस दोनों को तुमने कहाँ पकड़ा।" “सरस्वती-तट पर नगर-द्वार के बाहर।" "किस समय?" "तीन प्रहर रात्रि जाने पर।" “किसकी आज्ञा से?" "आपकी।" "इनके साथ कौन-कौन था?" “महारानी दुर्लभदेवी, यह यति और कुमार दुर्लभदेव का सामन्त।' "अच्छा, अब यति जी महाराज, आप कह सकते हैं कि आप उस अर्द्धरात्रि में महारानी और इन सबके साथ क्या षड्यन्त्र कर रहे थे?" “नहीं, मैं इनको जानता भी नहीं। मुझे नान्दोल जाते हुए पकड़ा गया है।" "और यह मुद्रा तथा पत्रिका?" “मैं इस विषय में कुछ नहीं जानता।" "अच्छी बात है, चम्पकबाला, तुम कुछ बता सकती हो?" "मैं कुछ नहीं जानती।" 60