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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१६३

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पाटन में हड़कम्प घोघाबापा और महाराज धर्मगजदेव के रणांगण में गिरने के समाचार हवा में तैरते हुए पाटन पर छा गए। अमीर दबादब गुजरात की ओर बढ़ा चला आ रहा है, इसकी भाँति-भाँति की विकृत और कल्पित कहानियाँ लोग कहने-सुनने लगे। कोई कहता, उसके साथ दैत्यों की सेना है; कोई कहता, उसके पास उड़ने वाली सांढ़नियां हैं; कोई कहता, वह मर कर भी जी उठता है, उसका सिर कट कर फिर जुड़ जाता है। जितने मुँह, उतनी बात। पाटन के उद्वेग का ठिकाना न रहा। लोगों के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। सेठ, साहूकार, गृहस्थ अपना धन-रत्न धरती में या तहखानों में छिपाने लगे। जिससे जो लेकर भाग जाते बना, ले भागा। जिसका जिधर मुँह उठा, वह उधर ही भाग निकला। किसी को किसी की सुध न रही। अमीर के चमत्कारों और अत्याचारों के अतिरंजित किस्से अनेक रूप धारण करके लोगो में आतंक उत्पन्न करने लगे। पाटन में भगदड़ मच गई। इस समय पाटन में दो ही ऐसे पुरुष थे, जिनपर पाटन का सारा दायित्व था। एक वैदेशिक मन्त्री दामोदर महता, दूसरा मन्त्रीश्वर विमलदेव शाह। दोनों ने परस्पर विचार- विनिमय किया। परिस्थिति को परखा और आगे-पीछे की योजना बनाई। महाराज वल्लभदेव और भीमदेव इस समय राधनपुर में सैन्य तथा युद्ध-सामग्री का संग्रह कर रहे थे। दामोदर महता ने तुरन्त नगर, राज्य और राज्यकोष की सुरक्षा की व्यवस्था की। नगर की भगदड़ रोक दी और ढिंढोरा फिराकर नगर निवासियों को राज्य व्यवस्था के अनुसार काम करने का आदेश दिया गया। कन्नौज, उज्जयिनी, श्रीमाल और भूगकच्छ के ब्राह्मण परिवारों को तथा राजकोष,राजपरिवार एवं उच्चवर्गीय परिवारों को खम्भात और भरुच भेज दिया गया। अवांछनीय जनों को दूर देशांतर में रवाना कर दिया, गाँव-देहात के लोगों को सुरक्षित स्थानों में स्थानान्तरित कर दिया। राह-घाट, पुलों और जलाशयों पर पहरे बिठा दिए। खम्भात की खाड़ी में समुचित जहाज़ों को, सब साधनों से सम्पन्न करके तैयार रखा गया। पाटन और आसपास के नगर-ग्रामों की सारी खाद्य-सामग्री पर राज्य ने अधिकार कर उसे तथा धन से भरे छकड़ों को महाराज वल्लभदेव के पास राधनपुर भेज दिया गया। अब रह गए गुजरात के प्रतापी महाराजाधिराज-पाटन नगर और पाटन के राजमन्दिर और देवालय। इनके सम्बन्ध में देर तक दोनों चतुर राजनीतिविशारदों ने विचार-विनिमय कर अपनी गुप्त योजनाएँ बनाईं। विमलदेव शाह ने महाराज को स्थानान्तरित करने का बीड़ा अपने हाथ में लिया और दामोदर महता नगर की रक्षा का। दोनों राजपुरुष अपनी-अपनी योजना को सफल करने में जुट गए।