सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हानि नहीं होगी। मुझे केवल भस्मांक को दे दीजिए। अब तक चुप बैठे महासंधि-वैग्रहिक चण्ड शर्मा ने स्थिर स्वर से कहा। महता ने कहा, “मैं भी आप ही के साथ हूँ। “न, तुम परछाईं की भाँति कुमार भीमदेव के साथ रहो। और कुमार को प्रभासपट्टन की सम्मिलित धर्म-सैन्य का सेनापति नियत करो। उनका रक्षण और नीति- संतुलन महता, तुम्हें करना है।" चण्डशर्मा ने कहा। “ऐसा ही हो, अब मैं क्या करूं?” महाराज वल्लभदेव ने कहा। “महाराज, आप प्रच्छन्न रूप से राधनपुर में विराजिए। आपकी सुरक्षा की मैं व्यवस्था करूंगा।" “क्या पाटन के सम्बन्ध में और कुछ विचार यहाँ होगा?" "नहीं।' ।” चण्ड शर्मा ने संक्षेप में कहा। "तो उन राजबन्दी और अपराधियों की बात ही रह गई, राजवध की चेष्टा और राजविद्रोह के दो भारी-भारी अभियोग इनपर हैं।" "महारानी दुर्लभदेवी को बन्दी करके दामोदर किसी गुप्त स्थान पर भेज दें, अन्य अपराधियों को प्राण-दण्ड दे दिया जाए। कुमार दुर्लभदेव के सम्बन्ध में फिर निर्णय होगा। अभी उन्हें मेरी निगरानी में छोड़ दिया जाए।” चण्ड शर्मा ने कहा। “क्या राह, घाट, पुल सब नष्ट कर दिए जाएँ? अमीर का अवरोध कैसे किया जाएगा?" “यह सब पाटन की राजनीति पर छोड़िए। मैं समुचित व्यवस्था कर लूँगा। कुमार समूची सम्मिलित सैन्य लेकर कल भोर ही में कूच कर दें। अमीर का विरोध-अवरोध जो होना है, प्रभास में ही हो। महाराज वल्लभदेव भी इसी क्षण पधार जाएँ, और मन्त्रीश्वर विमलदेव भी। समूची सुरक्षित सैन्य वे साथ ले जाएँ।” चण्ड शर्मा ने दृढ़ विश्वास के साथ कहा। “और पाटन?" “पाटन की रक्षा के लिए पचास सैनिक यथेष्ट हैं। नागरिकों का निष्कासन अब बन्द कर दिया जाए। यातायात के सारे साधनों पर इसी क्षण कुमार भीमदेव अधिकार कर लें। पाटन से प्रभास तक समूचे मार्ग पर सैनिक नियन्त्रण कायम कर लिया जाए। एक प्रहर दिन चढ़े बाद पाटन पर मेरी सत्ता स्थापित होगी। उस समय मेरे पचास सैनिकों के अतिरिक्त और सब कोई पाटन छोड़ दें।” चण्ड शर्मा ने स्थिर स्वर में कहा। चण्ड शर्मा की बात किसी ने नहीं काटी। दामोदर ने कहा, “अब सब-कुछ निर्णय हो गया। सभा भंग हो।" एक प्रहर रात रहते सभा भंग हुई। परन्तु इन राजपुरुषों में से विश्राम किसी ने नहीं किया। सभी अपनी-अपनी योजना में जुट गए। सूर्योदय से प्रथम ही पाटन में कूच का नगाड़ा बज उठा।