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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२३३

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आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। क्या यह भगवान् भूतनाथ सोमनाथ का दैवी चिमत्कार तो नहीं है?' इतने में कोट के नीचे से संकेत हुआ। राव ने रस्सी लटका दी। भोला चढ़ रहा था। राव हर्ष से नाच उठे। उन्होंने कहा, “आ वीर, क्या यह तेरी ही कारिस्तानी है?" भोला हँसते-हँसते अपने भीगे वस्त्र निचोड़ने लगा। उसने कहा, "बड़ा मज़ा हुआ बापू, जाते-जाते मैंने सोचा कि चुपचाप बेड़े को देखता ही चलूँ। जाकर देखा, वहाँ कोई नहीं है। बेड़ा खूटे से बाँधकर मेरे बेटे सब चले गए थे। प्रहरी कुछ दूर आग ताप रहे थे। मैंने डुबकी लगाई और बेड़े की तली में पहुँच दाँतों से बेड़े की सब रस्सियाँ काट डालीं। किसी को पता नहीं लगा। बेड़ा लहरों के थपेड़ों में घूमता हुआ गहरे समुद्र में यह जा, वह जा।" भोला दाँत निकालकर हँसने लगा। "बड़ी बात हुई भाया, तैने प्रभास को भी बचा लिया और मेरी इज़्ज़त को भी।” उन्होंने आगे बढ़कर भोला को छाती से लगा लिया। फिर कहा, “परन्तु अभी तुझे फिर जाना पड़ेगा।" “समझ गया बापू, मुझे वीरसिंह जी को सावधान करना है।" “हाँ-आँ, कहीं हमारे प्रवहण शत्रु की दृष्टि में न पड़ जाएँ।” "तो मैं अभी चला।” भोला ने रस्से पर हाथ डालते हुए कहा और वह चुपचाप गहरे पानी में पैठ गया।