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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२४

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शतदल श्वेत कमल-सी किशोरी, जब अपना समस्त अनावृत सौरभ लेकर लोगों की दृष्टि में चढ़ी, तो जनसमूह में उन्माद की आँधी आ गई। जनसमूह मुग्ध-मौन-अवाक् रह गया।

तभी मृदंग पर थाप पड़ी और कोमल पद की हल्की ठोकर से सुनहरी घूंघरू बज उठे—छन्न! मृदंग ने दौड़ भरकर फिर थाप मारी,और धुंघरू बजे—छन्न-छन्न-छन्न! फिर तो नूपुर-शोभित लाल कमल-से वे चरण श्वेत प्रस्तर के उस सभा-भवन के विस्तार को छू-छूकर ऊधम मचाने लगे। घुंघरुओं की झंकार जैसे लोगों के हृदयों में ज्वार-भाटा उत्पन्न करने लगी। अब सुनहरी जरी से कसी चोली, कारचोबी काम का लहंगा और हीरों से दमकता वक्ष, नीलम से लिपटी छोटी-सी कमर, पैरों की प्रत्येक गति पर जो हलचल मचाने लगे, और उनके साथ ही सिंहल के मुक्ताओं से सम्हारे हुए कुन्तल केश वायु में लहरा कर जैसे उस नृत्य का अनुकरण करने लगे, फिर मृदुल मृणाल-भुजाएँ विषधर नाग की भाँति हिलोरें मारने लगीं, यह सब देखकर दर्शक सुधबुध खो बैठे। इस सुप्रभात-सी सुकुमार नवल किशोरी का वह अद्भुत परम शुद्ध शैव-नृत्य देखकर बड़े-बड़े कलाकार आश्चर्यचकित रह गए। ऐसा प्रतीत होता था जैसे शुभ्रशोभना शरद ऋतु मूर्तिमती होकर ऊषा के उस मनोरम काल में सोमनाथ महालय में उतर आई हो।

धीरे-धीरे उसका बाह्य ज्ञान लुप्त होने लगा। उसके सामने सहस्रों नर-मुण्ड एकटक उसी को देख रहे हैं, इसकी उसे सुध न रही। वह एक बार गंग सर्वज्ञ और फिर देवता के ज्योतिर्लिंग को देख अधीर भाव से नृत्य करने लगी। उत्तुङ्ग पर्वत-शृङ्ग से गिरते हुए झरने के वेग के समान उसका वेग हो गया। मृदंगवादक हाँफने लगे। तन्तु वाद्य केवल कम्पन ध्वनित करने लगे। चौला के चरणों ने जो गति ली, वह मानो गतिहीन हो गई। अन्ततः उसकी गति मन्द पड़ने लगी। वह पुष्प-भार से नमित वृन्त की भाँति धीरे-धीरे नीचे को झुकती गई। ताल का ठेका धीमा हुआ, और चौला वहीं देवसान्निध्य में सहस्र जनता के समक्ष पृथ्वी पर बेसुध होकर गिर पड़ी। जन-जन की नसों में प्रत्येक रक्तबिन्दु नृत्य कर रही थी। दर्शक निर्निमेष, निस्पन्द बैठे रह गए। गंग सर्वज्ञ ने अश्रुपूरित नेत्रों से गंगा की ओर देखकर कुछ संकेत किया। गंगा ने यत्न से चौला को अंक में भरा, और उसे कक्ष के बाहर ले गई। गंग सर्वज्ञ स्वप्निल-से चुपचाप उठकर अपने आवास में गए। सबके हृदयों में एक ही कल्पना, एक ही छलना, एक ही मूर्ति जाग्रत हो रही थी। वह मूर्ति चौला की थी। शुक्र नक्षत्र की भाँति दैदीप्यमान और शुभ्र चांदनी की भाँति व्यापक, शीतल और वज्रमणि की भांति बहुमूल्य और दुष्प्राप्य, शारदीय सुषमा की भाँति शतधौत शुभ्र।