सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बालुकाराय ने दद्दा को मोट में गिरते और महाराज को उनके पीछे छलांग मारते देखा। इस समय वे द्वारिका-द्वार पर मोर्चा ले रहे थे। वहाँ बड़े वेग का धंसारा हो रहा था तथा द्वार ‘अब टूटा,अब टूटा' हो चला था। अब वे क्या करें? सोचने-विचारने का समय न था। संकट भारी था। बालुकाराय ने चरम साहस किया, अपने पाँच सहस्र सुरक्षित लाट योद्धाओं को ललकारा और द्वार खोल दिया। एक ओर हर-हर महादेव का नाद करते हुए लाट-योद्धा द्वार से शत्रुओं को धकेल कर अपने महाराज के प्राणों की रक्षा के लिए बाहर आ-आकर जल में कूदने लगे। दूसरी ओर तुर्क सवार अल्लाहो-अकबर कहते हुए, एक बार दुर्धर्ष वेग से फिर द्वार में धंस गए। बालुकाराय का सारा ध्यान महाराज पर था। और वे जल में कूदकर दोनों हाथों से तलवार चलाते हुए अपने योद्धाओं को बढ़े आने को ललकार रहे थे। और गुर्जर-योद्धा आकाश से टूटते नक्षत्रों की भाँति जल में कूद कर तलवार चला रहे थे। बड़ा ही दुर्घट समय था। अन्त में गुर्जर योद्धा महाराज के निकट पहुँच पाए। कठिन मार में उन्होंने महाराज और दद्दा का सैकड़ों घावों से भरा मूर्च्छित शरीर अपने कब्जे में किया और हाथों-हाथ लेकर द्वारिका-द्वार की ओर लौटे। पर इस बीच अरक्षित द्वार पर फिर तुर्कों ने अधिकार कर लिया था और उनके दल-बादल कोट में घुसे चल आ रहे थे। मकवाणा ने दूर से यह संकट-भरा दृश्य देखा। उन्होंने यह भी देखा कि महाराज, दद्दा और बालुकाराय तीनों की खैर नहीं है। उनका कोट में प्रविष्ट होना तथा जीवित रहना कठिन है। वह दुर्धर्ष वेग से अपने योद्धाओं को लेकर द्वारिका-द्वार पर दौड़े और लोहे की जीवित दीवार बनकर द्वार अड़ गए। एक बार शत्रु की गति फिर रुक गई। अब इस वीर ने प्रबल सामर्थ्य से शत्रु को चीरकर राह बनाई। बालुकाराय और महाराज को भीतर लिया तथा एक बार फिर द्वार को अधिकृत करने में सफल हुए। राजपूतों ने उमंग में भरकर तुमुल हर्षनाद किया-'हर-हर महादेव!'