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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२८२

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दूंगा।" "परन्तु गुजरात की प्रतिष्ठा का प्रश्न है।" “गुजरात के धनी के प्राणों का मूल्य उससे बहुत अधिक है अन्नदाता।" "नहीं वैद्यराज, मैं अधिक काल तक शय्या पर नहीं रह सकता।" वैद्यराज ने सिर झुका लिया। महता ने कहा, “महाराज, हम जैसे भी सम्भव होगा, आपको स्वास्थ्य-लाभ कराने की शीघ्रता करेंगे, परन्तु अभी अगत्य की बात है।" संकेत पाकर वैद्यराज चले गए। महाराज ने कहा, "हाँ, परन्तु मेरी तो एक ही बात है, कि गज़नी का यह दैत्य और उसके संगी-साथियों में कोई यहाँ से जीवित लौटने न पाए।" “यही हमें निर्णय करना है महाराज, मेरी एक योजना है", महता ने कहा। “कहो महता।” महाराज ने आकुल दृष्टि से महता को देखकर कहा। “महमूद के लौटने के दो मार्ग हैं, एक आबू को होकर राजस्थान को भंग करके- दूसरा कच्छ के रन में होकर।" "तब?" "हमें राजस्थान का मार्ग अवरुद्ध करना होगा। और यह मोर्चा आबू चन्द्रावती की उपत्यका में होगा। विमलदेव शाह साठ सहस्र संगठित योद्धा लिए वहाँ तैयार बैठे हैं। महाराज वल्लभदेव भी सब सैन्य और साधन ले उनसे जा मिले हैं। मैंने देवपट्टन से चलते ही यह व्यवस्था कर दी थी। विमलदेव को सूचना भी भेज दी थी। चन्द्रावती के परमार और अनहिल्लराय, नान्दौल से सैन्य समेत आबू को चल पड़े हैं। उनकी आँखें खुल गई हैं। दोनों की संयुक्त सेना चालीस हज़ार है परन्तु एक बाधा है।" "वह क्या?" "कुमार दुर्लभदेव। उन्होंने अमीर से गुप्त सैन्य संधि कर ली है। और वे गुर्जराधीश बनने को तैयार बैठे हैं। उनके पास पचास सहस्त्र सज्जित सेना है। युद्ध में वह निश्चय ही अमीर का पक्ष लेंगे।" "क्या उनके सब सेनापति और योद्धा भी उन्हीं की भाँति शत्रु के दास और देशद्रोही हैं?" "नहीं महाराज, वे सब हमारे साथ हैं।" "तो क्यों न दुर्लभदेव को बन्दी कर लिया जाए?" “वह तो ठीक न होगा महाराज, मैंने एक बात सोची है।” महता ने कहा। "क्या?" 'अमीर पाटन पहुँचकर उनका अभिषेक करेगा, यह मुझे ज्ञात है। हम ऐसा उपाय करेंगे कि पाटन जाते समय दुर्लभदेव के साथ अधिक सैन्य न हो। यह कुछ भी कठिन नहीं होगा। क्योंकि सेनानायकों से सब कुछ निर्णय किया जा चुका है। अमीर सम्भवतः जल्द से जल्द पाटन से पलायन करने की सोचेगा। उसका बल भंग हो गया है। और उसके सैनिक भी अशांत हैं। हम उसे और भयभीत करेंगे। वह हमारी आबू की तैयारी से बेखबर भी न रहेगा। बेखबर हम रहते भी न देंगे। बस, वह पाटन में अधिक न ठहरेगा। दुर्लभदेव को राज्य दे, लूट का माल ले सीधा गज़नी भागेगा। उस समय अरक्षित दुर्लभ को कैद कर लेना कुछ भी