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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२८७

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आसकरण सेठ का देसावर आसकरण सेठ खम्भात के नगर-सेठ थे। उनका कारबार, प्रतिष्ठा और धन-वैभव बहुत चढ़ा-बढ़ा था। देश-देशान्तरों में उनके नाम की हुण्डी चलती थी। आयु पूरी होने पर अस्सी वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हुई। परिवार में उनके छोटे भाई मदनजी महता और पुत्र-पौत्र-परिजन सब मिलकर पचासों व्यक्ति थे। मदनजी महता ने बड़े भाई की मृत्यु पर देसावर करने का मनोरथ किया था। अंजार, मांडवी, मुद्रा, लखपत, बेराजा, सुथरी, तेरा, रोहा, पतरी आदि बारह गाँवों के महाजन खम्भात में एकत्रित हुए थे। बहुत वर्षों से किसी धनी ने देसावर नहीं किया था, अत: इस अवसर पर दूर-दूर से जिन्हें आना था, वे भी जाति-गंगा में स्नान करने आए थे। एकत्रित होने वालों की भिन्न-भिन्न भावनाएँ भी थीं। बहुत लोग सगे-सम्बन्धियों से मिलने आए थे, बहुत जन कारबार, बहीवट, लेखा-जोखा देखने आए थे। कितने लोग जिज्ञासा की भावना से, कितने सैर-सपाटे के लिए और माल-मलीदे उड़ाने के विचार से आए थे। इस प्रकार आसकरण की मृत्यु के ग्यारहवें दिन खम्भात के बाजारों में बड़े-बड़े नगरों के सेठ, श्रीमन्त व्यापारियों, पटेल-वाणियों की भीड़ की भीड़ घूम रही थी। अनेक पिता अपने पुत्रों को सजा-धजाकर उनकी सगाई कराने के विचार से बेटी वालों की नज़र में चढ़ाने लाए थे। ये गाँव-गाँव के सेठ-महाजन कसकसे अंगरखे पहने, केस कन्धों पर डाले, पान चबाते बाज़ार में घूमकर परस्पर मिल-भेंट कर एक-दूसरे का कुशल-मंगल पूछते फिर रहे थे। घिरावदार अंगरखों पर चुस्त चुन्नट पड़ी आस्तीन, मलमल की इज़ारबन्द की फैट, और चमकता लाल सोरठी जूता ठाट बता रहा था। नगर-सेठ के घर धूम मची थी। विविध पकवान बन रहे थे। मिठाइयों के थाल-पर- थाल सजाए जा रहे थे। सैकड़ों जन काम-काज में व्यस्त थे। मदनजी सेठ और उनका पुत्र देवचन्द्र हाथ बांधे नम्रता से सब आगत-अभ्यागतों का स्वागत-सत्कार कर रहे। अभी सन्ध्या नहीं हुई थी। भोजन की पांत बैठी। बाहर के तथा नगर के महाजन जीमने के पाटों पर आ बैठे। परोसगारी प्रारम्भ हुई। किसी का हाथ लड्डू पर गया, किसी का पूरी पर, परन्तु मुँह तक किसी का हाथ नहीं पहुँच पाया। इसी समय भयानक कोलाहल सुनकर सब कोई चौकन्ने हो गए। एक युवक लोहू-लूहान गिरता-पड़ता सेठ की देहरी में गिर गया। उसने हांफते-टूटे स्वर में कहा, “अनर्थ, अनर्थ! ब्राह्मण-वध, देव-भंग!" सब कोई हाथ का कौर छोड़ उठ खड़े हुए। मदन जी सेठ ने आगे बढ़कर कहा, "अरे, रामदेव महाराज, क्या हुआ? कहो तो सही!" रामदेव ने टूटते स्वर में कहा, “गज़नी का अमीर आया है, उसने गुरुदेव नृसिंह स्वामी को बाँध लिया है महालय भंग किया जा रहा है। ब्राह्मण वध किए जा रहे हैं।" उसने फटी-फटी आँखों से चारों ओर देखा और निर्जीव होकर भूमि पर गिर गया। "हरे राम, हे गोविन्द, शिव-शिव, ब्राह्मण-हत्या!” कहकर सब महाजन विमूढ़ हो एक-दूसरे को देखने लगे! सभी पत्तलें छोड़ उठ खड़े हुए।