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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३००

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फतह मुहम्मद ने फुसफुसा कर कहा, “कहाँ लिए जा रही हो शोभना?” पर शोभना ने अपनी नर्म-नर्म हथेलियाँ उसके मुँह पर रख दीं। वे एक शून्य अलिन्द में पहुँचे। सामने एक बन्द द्वार था। शोभना ने उसकी दरारों को झांक कर देखा। फिर फतह मुहम्मद के पास जाकर कहा, ज़रा मुझे अपनी तलवार तो दो! उसने उसे सोचने-विचारने का अवसर नहीं दिया, उसके हाथ से तलवार लेकर उसकी नोंक दीवार की दरार में घुसाई, द्वार खुल गया। तलवार हाथ ही में लिए वह द्वार में घुस गई और फतह मुहम्मद को पीछे आने का संकेत किया। क्षण भर को वह झिझका और फिर लपककर भीतर घुस गया। भीतर अंधकार था। घुसने के बाद द्वार अपने आप ही बन्द हो गया। द्वार बन्द होने की आहट पाकर उसने पीछे की ओर देखा, एक भीति की भावना उसके मन में व्याप गई, उसने पुकारा, “शोभना।" परन्तु शोभना ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह उस घने अंधकार में दोनों हाथ फैला- फैला कर शोभना-शोभना चिल्लाने और इधर-उधर दौड़ने लगा। परन्तु शीघ्र ही दीवार से उसका सिर टकरा गया। उसने उलटकर द्वार खोलने की चेष्टा की परन्तु सफलता नहीं मिली। अब क्रोध और अधैर्य से पागल होकर उसने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर कहा, “दगा- दगा! तुमने मुझसे दगा की, शोभना!" एक छोटा-सा मोखा खुला। उसमें से थोड़ा प्रकाश उस कक्ष में आया। शोभना ने मोखे में झांककर कहा- “निस्सन्देह देवा, मैंने तुमसे दगा की। क्योंकि मैं औरत हूँ। मेरे पास और उपाय नहीं था।" "लेकिन शोभना, मैंने तुझे प्यार किया था।" "प्यार तो मैंने भी तुझे किया था देवा।" “पर तेरा प्यार मेरे-जैसा नहीं था।" "शायद, प्यार कभी किसी ने तराजू पर तो तोला नहीं। तेरा कैसा प्यार था, यह तू जान, मैं तो अपने प्यार को जानती हूँ।" "उसी प्यार का नतीजा? विश्वासघात !" “निस्सन्देह, प्यार तूने भी किया, और मैंने भी। पर प्यार होता है अंधा। वह यह न देख सका, कि तू क्रीत दासी का दास बेटा है, और मैं ब्राह्मण की बेटी हूँ।" “इससे क्या शोभना, हम दोनों एक-दूसरे को प्यार करते थे।" “पर दास और ब्राह्मण के रक्त में तो अन्तर है न? दास के रक्त ने प्यार को दासता के दांव पर लगाया। धर्म, ईमान, मनुष्यता सब पर लात मारकर उसने स्वार्थ-लिप्सा ही को देखा। पर ब्राह्मण के रक्त ने मनुष्यता पर प्यार को न्यौछावर कर दिया। आज मेरी आँखें खुल गईं। मैंने तुम्हारा असली रूप देख लिया।" “क्या देखा?" "कि तुम मनुष्य नहीं, कुत्ते हो। तुम्हारे प्यार का मूल्य एक जूठी रोटी का टुकड़ा "शोभना", फतह मुहम्मद क्रोध से उन्मत्त होकर चिल्लाया। उसने कहा, “शोभना, जैसा मेरा प्यार अंधा है वैसा ही गुस्सा भी है।"