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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३१७

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उसमें दूर तक हो आया था। अब वह भूख-प्यास और थकान सब भूलकर उस अन्धकारपूर्ण मार्ग पर भरसक दौड़ लगाने लगा। वह बहुत बार ठोकर खाकर गिरा। बहुत बार उठकर भागा। बहुत बार सिर दीवार से टकराया। पर जैसे उसे इन सब बातों की सुध ही न थी। वह भागा जा रहा था। अन्त में उस अन्ध गुफा का अन्त हुआ। प्रकाश कण आया और जब वह नदी-तीर के एक पार्वत्य प्रदेश में बाहर निकला, तो सूर्य मध्याकाश में प्रखर तेज बखेर रहा था। उसने दौड़कर कल-कल बहती नदी के निर्मल जल पर अपने प्यासे होंठ लगा दिए।