सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तीनों ने एक-दूसरे को पानी ढरते नेत्रों से देखा। प्रेम-त्याग-साहस और उत्सर्ग की वहाँ गंगा बह रही थी। फिर वे तीनों कंचनलता को बीच में करके एक-दूसरे से सटकर, जो कुछ आगे होने वाला था, उसका सामना करने को चुपचाप बैठ गए। बहुत देर बाद देवचन्द्र ने कहा, “एक मलाल मन में रह गया पूनम भाई?' "क्या?" “उस मसऊद कुत्ते को मैं अपने हाथ से न मार सका।" "उसके तो सातों कर्म पूरे हो गए?" “अरे, यह कैसे?" पूनमचन्द ने वस्त्र हटाकर अपनी छाती दिखाई। छाती खून से भरी हुई थी। देखते ही कंचन के मुँह से चीख निकल गई। देवचन्द्र ने आकुल स्वर से कहा, "अरे, तुम तो घायल हो, देखू।" पूनमचन्द ने घाव को वस्त्र से ढकते हुए कहा, “यानी मरते-मरते घाव दे गया। मुद्रा उसी के पास तो मिली।” फिर उसने सब हाल सुनाते हुए कहा, “सरस्वती तीर पर उसकी लोथ पड़ी है, इस समय तो देखने वालों की वहाँ भीड़ लग रही होगी।" पूनम मुस्कराया। कंचन ने व्यग्र हो साड़ी फाड़ डाली। वह घाव पर पट्टी बाँधने उसकी ओर मुड़ी। पूनम ने लापरवाही से कहा, "कुछ ऐसा भारी घाव नहीं है, रहने दो।" परन्तु देवचन्द्र ने आग्रह किया, कहा, “घाव गहरा है। छिपाते क्यों हो – पट्टी बाँधने दो।" उसने बहिन का हाथ बँटाने को हाथ बढ़ाया। उसके हाथ को नरमी से अपने हाथ में लेकर पूनम ने कहा, “यार, अब यह सब खटपट कितनी देर के लिए? कुछ घड़ी की तो बात ही है, कि सब बेड़ा पार।" परन्तु कंचन का मूल आग्रह टाला नहीं जा सका। उसने अपने हाथ से वस्त्र हटा, घाव पर पट्टी बाँध दी। पूनमचन्द ने और विरोध नहीं किया। इसी समय द्वार पर कुछ शोर सुनाई दिया, और कुछ देर बाद जल्लादों सहित बहुत-से हथियारबन्द सिपाही वहाँ आ पहुँचे। उन्हें देखते ही बन्दीगृह हाहाकार और क्रन्दन से भर गया। केवल ये तीनों बन्दी मूक-निस्पन्द एक-दूसरे का हाथ दृढ़ता से पकड़े पृथ्वी पर दृष्टि दिए बैठे थे। उनकी आँखों में आँसू न थे। जल्लादों के मुखिया ने कैदियों को गिनना प्रारम्भ किया। और कहा, “सब तिरसठ “तिरसठ? गलत, बासठ होने चाहिएँ।” जल्लादों के मुखिया ने अपनी बुद्धिमत्ता दिखाते हुए कहा, “फिर गिनो!" इस बार भी तिरसठ ही रहे। सहायक ने मुखिया जल्लाद से कहा, “अब तुम गिन लो।" उसने गिनकर देखा, तिरसठ थे। परन्तु उसने कहा, “मुझे बासठ बताए गए हैं। अरे भाई कैदियों, क्या तुममें कोई गलती से आ गया है?" कइयों के होंठ एक साथ ही खुले। परन्तु स्वर नहीं निकला। होंठ वहीं चिपक गए। मुखिया जल्लाद ने कहा, "तब एक ज़्यादा ही सही। क्या किया जाए। पर मेहनताना तो