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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/५९

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co ख़ानकाह में आराम करूँगा। क्या कुछ खाने को मिलेगा?" "मकई की रोटियाँ और सरसों का साग है।" "तो इनायत फ़रमाइए हज़रत!" फ़कीर उठकर दो रोटियाँ ले आया। सुलतान ने हथेली पर रखकर मकई की रोटियाँ सरसों के साग से खाईं और साधु की सुराही से ठण्डा पानी पिया। फिर हँसकर कहा, “हजरत! बड़ी मीठी रोटियाँ थीं।” इसके बाद अमीर अपने हाथ से घोड़े का चारजामा बिछा और नंगी तलवार सिरहाने रखकर वहीं भूमि पर सो गया। वृद्ध फ़कीर सारी रात उस अप्रतिहत-विजेता के सिरहाने बैठकर प्यार और अफ़सोस के आँसू बहाते रहे।