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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/६४

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गज़नी आया। दसवीं शताब्दी के मध्यभाग में एक तुर्की गुलाम अपनी हिम्मत और जवांमर्दी से खुरासान और गज़नी को दखलकर बैठा। उन दिनों ये प्रान्त अराजक प्रान्त थे। सरदार लोग जो वास्तव में बड़े-बड़े डाकू थे, अपना दलबल लेकर मारकाट करते और अपनी अस्थायी सत्ता एक गाँव से दूसरे गाँव में स्थापित करते थे। इस गुलाम का नाम सुबुक्तग़ीन था। सुबुक्तग़ीन गुलाम होने पर भी अपनी योग्यता तथा बुद्धिमत्ता एवं साहस से एक प्रबल सरदार बन गया और उसने शीघ्र ही इतनी सत्ता प्राप्त कर ली कि आस-पास के सरदारों में कोई भी उसे न पा सका। खुरासान और गज़नी दखल करने के बाद उसने अपनी बर्बर सेना को क्रियाशील बनाए रखने के लिए भारत की ओर मुँह किया। गज़नी और खुरासान उन दिनों साधारण गाँव थे। आसपास के उजाड़, दरिद्र, और पहाड़ी दुर्गम इलाकों में लूटपाट करने के लिए कुछ भी नहीं था। उसने आने-जाने वाले व्यापारी काफिलों, फ़कीरों और जासूसों से भारत की समृद्धि के विषय में बहुत-कुछ सुन रखा था। साहसी तो वह था ही, अत: भारत में घुस उस समय पंजाब में महाराज जयपाल राज्य करते थे। उन्होंने खैबर घाटी को सुरक्षित रखने और उधर से किसी शत्रु को भारत में न घुसने देने की शर्त पर-नवाब बनाकर-शेख हमीद नामक एक मुसलमान सरदार को पेशावर और खैबर का थानेदार नियत किया था। सुबुक्तग़ीन को आगे बढ़ता देखकर महाराज जयपाल ने सावधानी के विचार से आगे बढ़कर जलालाबाद में छावनी डाल दी, जो कि खैबर घाटी के पच्छिमी मुहाने पर अफ़गानिस्तान की सीमा है। परन्तु सुबुक्तग़ीन ने गहरी कूटनीति से काम लिया। वह समय टालता और भयभीत होने का बहाना करता रहा। महाराज जयपाल यह भेद न समझ पाए। शेख हमीद से भी उसने मामला ठीक कर लिया। जब शीतकाल आया और बर्फ पड़ने लगी, तब सुबुक्तगीन ने धावा बोल दिया। जयपाल की सेना सहायता और कुमुक के अभाव से सर्दी में निकम्मी हो गई। उससे युद्ध करते न बन पड़ा। महाराज जयपाल लौटे। परन्तु शेख हमीद ने घाटी का मुहाना रोक दिया और महाराज जयपाल घाटी में घिर गए। निरुपाय हो उन्होंने ढाई लाख रुपए तथा 50 हाथी देने का वचन देकर सुबुक्तगीन से सन्धि कर ली तथा उसके सरदारों को संग लेकर वे लाहौर चले आए। परन्तु लेन-देन के मामले पर महाराज और सुबुक्तग़ीन के आदमियों से झगड़ा हो गया। सुबुक्तग़ीन भारत घुस आया। पेशावर में खुला युद्ध हुआ। युद्ध में दिल्ली, अजमेर, कालिञ्जर और कन्नौज के राजाओं ने जयपाल का साथ दिया। फिर भी इस युद्ध में महाराज जयपाल हारे, और उनकी सम्पूर्ण सम्पदा लूट ली गई। सुबुक्तगीन, महाराज को बन्दी करके गज़नी ले गया। पेशावर में उसने अपना हाकिम बैठा दिया। इस प्रकार शेख हमीद की नमक-हरामी का यह परिणाम हुआ कि पंजाब पर सुबुक्तग़ीन का अधिकार हो गया। सुबुक्तग़ीन के साथ ही एक