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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/७०

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ईद का दरबार किया था। गज़नी नगर के निकट कोहे-सुलेमान की तराई में एक खुशनुमा घाटी थी, जो तमाम तातार में फूलों की घाटी के नाम से विख्यात थी। यह खुशनुमा घाटी बारहों मास चमेली और गुलाब से आच्छादित और उन्हीं के फूलों से सुवासित रहती थी। वहाँ से बृहत्तर गज़नी की अनगिनत मस्जिदों की गगनचुम्बी मीनारें और उन्नत गुम्बज सुनहरी धूप में चमकते दीख पड़ते थे। यहीं अमीरे-गज़नी ने अपनी नई छावनी डाली थी। वह आज ईद का दरबार अपने शाही दीवानखाने में न करके अपने उन योद्धाओं के बीच करना चाहता था, जिनके साथ उसने इक्कीस वर्ष तक धरती को रौंदा था। अपनी वज्र की एड़ियों से देशों, नगरों और जनपदों को कुचला था, रक्त की नदियाँ बहाई थीं। अपने हाथ से काटे हुए लक्ष- लक्ष नरमुण्डों पर विजय-स्तम्भ स्थापित किए थे। मृत्यु-दूत बनकर जीवन का विनाश बीस हज़ार गोल तम्बू वृत्ताकार फैले थे। इनपर रंग-बिरंगी रेशमी पताकाएँ हवा में लहरा रही थीं। सबके बीच में महमूद का विशाल खेमा था, जिसका हर बाजू सवा सौ कदम लम्बा था। उसकी ऊँचाई तीन नेजों के बराबर थी, और उसका मध्य भाग बारह ऐसे स्वर्ण-स्तम्भों पर टिका था, जिनकी मोटाई मनुष्य की मोटाई के बराबर थी। लाल रंग की पाँच सौ रेशमी डोरियाँ उस विराट् खेमे को थामें हुई थीं। नीली, पीली, लाल और हरे रंग की पट्टियों से खेमे का बाहरी भाग सुसज्जित था। यह समूचा तम्बू सफेद चमड़े का बना था। खेमे के फर्श पर बहुमूल्य ईरानी कालीन बिछे थे, जिन पर सुनहरी तारों का काम हो रहा था। खेमे के बीचोंबीच ठोस सोने का सिंहासन था, जिसके चारों कोनों पर चार उकाब चांदी के बने थे। सिंहासन पर कमख्वाब का चंदोवा तना था, जो रत्नजटित डंडों पर फैला हुआ था। सिहांसन पर वह अजेय,अप्रतिहत रथी, सखीमे-फिरानी, बादशाहों का बादशाह, अमीर महमूद बैठा था। वह जो चोगा पहने था, उसपर हज़ारों मोती और हीरे टंके थे। उसके मस्तक पर जो हरी पगड़ी सुशोभित थी, और उसके तुर्रे पर जो तेजस्वी लाल जड़ा था, वह उस नरशार्दूल के इधर-उधर सिर हिलाने पर ऐसा दीख पड़ता था, मानो एक तृतीय नेत्र केवल अग्नि-स्फुलिंग से पूर्ण विश्व को भस्म करने के लिए उसके मस्तक पर उदय हुआ हो। उसकी आँखें लम्बी और तेज थीं। उनसे कुछ भी नहीं छिपाया जा सकता था। अरबों के प्रिय रत्न जमरुद का एक बड़ा तौक उसके गले में पड़ा था। सुवासित मद्य से भरे हुए चार सौ घड़े और शाही भोज का सुस्वादु दस्तरखान करीने से प्रस्तुत था, जिनमें भाँति-भाँत के मेवे, तले और भुने हुए मांस तथा भाँति-भाँति के मिष्ठान्न और पकवान थे। अमीर के पीछे गवैये और पैरों के पास रिश्तेदार, दूसरे बादशाह, अमीर, सरदार आदि बैठे थे, किन्तु उसकी बगल में कोई न था। आनन्द और विजयोत्सव के जितने साधन जुटाए जा सकते थे, वे सब वहाँ एकत्र