पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९७
सोलहवॉ प्रस्ताव

बुद्धू –(मन में) हमने तो पहले सोचा था कि इन चौपटहों का साथ हमारे बाबू को किसी दिन खराब करेगा। जो वात आज तक इस घराने में कभी नहीं हुई, उसकी नौवत पहुँची, तो अब बाकी क्या रहा। सच है, बुरे काम का बुरा अंजाम। देखिए, आगे अब और क्या-क्या होता है ?


_____________

सोलहवाँ प्रस्ताव

छिद्रेष्वनर्था बहुली भवन्ति।*[१]

मेरे मन कुछ और हैं, कर्ता के कुछ और।

सब लोग अपनी-अपनी पसंद के माफिक स्वच्छंद आमोद-प्रमोद में लगे हुए थे। एक ओर प्याले पर प्याला चल रहा था, दूसरी ओर पौ छक्के का शगल शुरू था कि अचानक इस खबर के जाहिर होते कानो कान सब आपस में कानाफूसी करने लगे। एकबारगी सन्नहटा छा गया। नदू का चेहरा जर्द 'पड़ गया। वहाँ से निकल जाने की तदबीर सोचने लगा। दोनो बाबू भी घबरा गए और इस ख्याल मे थे कि नंदू उनका दिली खैरख्वाह है, अपने ऊपर सब ओढ़ लेगा, उन. दोनो पर ऑच न आवेगी। इधर नंदू इस फिकिर में लगा कि जिस इलज़ाम पर वारेट आया है, वह इन बाबुओं पर थाप दे, तो हम साक बरी रहे । सच है 'आपत्सु मित्र'


  1. * दुख में और भी दुख पड़ते हैं।