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पृष्ठ:स्वदेश.pdf/४०

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भारतवर्ष का इतिहास।

जकल भारतवर्ष का जो इतिहास पढ़ा जाता है––जिसे रटकर लड़के परीक्षा देते हैं––वह भारत को आधीरात के सन्नाटे में दिखाई दिये हुए बुरे सपने की कहानीमात्र है। न जाने कहाँ से कोन आये; लड़ाई-भिड़ाई, मारकाट का शोर मच गया; बाप-बेटे और भाई-भाई में राजगद्दी के लिये चोटें चलने लगी; एक दल जाता है तो दूसरा दल आता है; वह सिधारता है तो तीसरा पधारता है। पठान-मुगल-पोर्चुगीज-फरासीसी-अँगरेज, सब ने मिलकर उस दुःस्वप्न को उत्तरोत्तर जटिल बना डाला है।

किन्तु, इस प्रकार रक्तरक्षित चंचल स्वप्नका पर्दा डाल कर देख- नेसे भारत का यथार्थ रूप नहीं दिखाई दे सकता। इस पृथ्वीपर भारतवासियों का स्थान कहाँ है, इसका कुछ भी उत्तर ये इतिहास नहीं देते। इन्हें देखने से तो यही जान पड़ता है कि भारतवासी कहीं हैं ही नहीं; भारत में जो लोग खूनखराबी, मारकाट, लूटपाट कर गये हैं वे ही जो कुछ हैं सो हैं।

मगर क्या उस दुर्दिन में उस मारकाट और खूनखराबी के सिवा और कुछ था ही नहीं? ऐसा नहीं हो सकता। आँधी के समय आँधी ही उस समय की प्रधान घटना है––यह बात आँधी के लाख लाख गरजने पर भी नहीं मानी जा सकती। उस दिन–उस आँधी–पानी के दोन-