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पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६६६

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तरुणारण, वशीकरण आलिंगन, परिरभ्मण,- करुणारुण, प्राणशरण अपरस्पर अबलम्बन,- छोह, मोह, नेह, टोह सेन्द्रियता के बन्धन,- प्राण रमे इनमें, ये बन बैठहृदय - हार झांके किमि आर पार 7 फिर भी है जीवन म एक टोह हक - भरी, "विमिदम् ' की बेर - बेर टेर उठी कृक - भरी, परदे के पार गयो जव न दृष्टि चूक - भरो, हुई और भी प्रचण्ड तय 'कोह?' की पुकार किमि शाके आर-पार? नना जल ८अगस्त १९४१ 1 मरघट-घाट अपराजिता चिता की आधी बुझी अवजली देरी,- बिहस उठी यह कहार मै हूँ चिर जीवन की चेरो, हैसते देख चिता को मन का ज्ञान हा मुसकाया, गिन्तु मौह ने मानस पट पर गश्रु-तुलिका फेरी । धुओं उठा धू धू भंडराता, इठलाता, बल खाता, जीवन के दिन की लघूता को रह रह कर दरसाता, पर, निरभ्र से, नीलगन से यह नभ वाणी आयी, चेतन तो, जीवन वन, पर क्षण गर यो आता। इम विपपायी शनमक