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पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१९

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कहानियां और बदज़ाद की कविताओं का दीवाना बन जाये और इस प्रकार किसी से प्यार करने में सफलता प्राप्त करे; परन्तु चाहने पर भी वह एम० असलम का उपन्यास पूरा न पढ़ सका और न "बदज़ाद" की कविता में अनोखा-पन देख सका। एक दिन उसने अपने हृदय में प्रण कर लिया, चाहे कुछ भी हो, मैं एम० असलम और बदज़ाद के बिना ही सफलता प्राप्त करूँगा। जो विचार मेरे दिमाग़ में है, मैं इन सब के साथ किसी एक लड़की से प्यार करूँगा---यही होगा कि असफल रहूँगा; परन्तु इन डुगडुगी बजाने वालों से तो अच्छा है। उस दिन से उसके मन में प्रेम करने का विचार और भी प्रबल हो उठा और उसने प्रति-दिन बिना जलपान किये, रेल के फाटक पर जाना शुरू कर दिया, जहाँ से बहुत सी लड़कियाँ 'हाई स्कूल' की ओर जाया करती थीं।

फाटक के दोनों तरफ लोहे के बहुत बड़े तवे लगा कर लाल रोग़न किया गया था। दूर से जब वह इन लाल तवों को एक-दूसरे के पीछे देखता, तो उसे मालूम हो जाता कि 'जनता मेल' आ रही है। जब फाटक के समीप पहुँचता, तो मुसाफिरों से लदी हुई जनता मेल आती और दनदनाती हुई स्टेशन की ओर निकल जाती।

फाटक खुलता और वह...लड़कियों की प्रतीक्षा में खड़ा हो जाता। पहले दिन इधर से पच्चीस नहीं, छब्बीस लड़कियों को आते देखा। अपने समय पर इधर से लोहे की पटरियों को पार करके, कम्पनी-बाग़ के साथ वाली सड़क पर चली जाती, जिधर उनका स्कूल होता था। इन छब्बीस लड़कियों को जिनमें दस हिन्दू लड़कियों को देख सका, सोलह मुसलमान लड़कियों का सारा शरीर तो बुर्कों में छिपा रहता था।

दस दिन तक लगातार फाटक पर जाता रहा। दो तीन दिन इन बुर्के और बग़ैर बुर्के वाली लड़कियों की ओर देखता रहा। पूरे दसों


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हवा के घोड़े