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पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१०

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देखा कि बहुत सी मनचली बूढ़ी स्त्रियाँ, जिनके मन की अभी सुख-संभोग से तृप्ति नहीं हुई थी और जो चाहती थों कि हम सदा नवयौवना ही बनी रहें, अपनी झुर्रियाँ फेंकने के लिये आ रही हैं। बहुतेरी अल्पवस्यका छोकड़ियाँ अपना काला वर्ण फेंक रही हैं और यह चाहती हैं कि मेरा रंग गोरा हो जाय। किसी ने अपनी बड़ो नाक, किसी ने नाटा कद और किसी ने अपनी बड़ी पेटी फेंक दी है और यह प्रार्थी हुई हैं कि मेरी तोंद की परिधि कुछ कम हो जाय या यदि रहे भी तो कुछ उँचाई अधिक मिल जाय। किसी ने अपना कुबड़ापन प्रसन्नतापूर्वक ढेर में फेंक दिया है। इसके पश्चात् रोगियों का दल आया जिसने अपना अपना रोग अलग कर दिया। पर मुझे सबसे आश्चर्यजनक यह जान पड़ा कि मैंने इन सब मनुष्यों में किसी को भी अब तक ऐसा नहीं देखा जो अपने दोषों वा अपनी मूर्खता से अलग होने आया हो। मैंने पहले सोचा था कि मनुष्य मात्र इस समय अवसर पा अपना अपना मनोविकार फेंक जायेंगे।

अब मैंने देखा कि कोई कोई मनुष्य पत्र के बंडल बगल में दबाए बड़ी व्यग्रता से फेंकने को दौड़े आ रहे हैं। क्यों भाई! यह पत्रों का बंडल कैसा? मालूम हुआ कि यह दफा १२४ ए० है जिसने इन महाशयों को चिंताकुल कर रखा है, एवं इनके व्यापार में बाधा डाल रखी है। इसके अनंतर एक मूर्ख को देखा कि वह अपने अपराधों को बंडल में बाँधकर