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पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/३८

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से ऐसे सुंदर दिखलाई देते थे मरे हुए पड़े हैं; पंख नुचे खुचे और बहुतेरे बिलकुल सड़े हुए, यहाँ तक कि मारे बदबू के राजा का सिर भिन्ना उठा। दो एक ने, जिनमें कुछ दम बाकी था, जो उड़ने का इरादा भी किया तो उनका पंख पारे की तरह भारी हो गया और उसने उन्हें उसी ठौर दबा रखा। वे तड़फा जरूर किए, पर उड़ जरा भी न सके। सत्य बोला "भोज, बस यही तेरे पुण्यकर्म हैं, इसी स्तुति वंदना और विनती प्रार्थना के भरोसे पर तू स्वर्ग में जाया चाहता है। सूरत तो इनकी बहुत अच्छी है पर जान बिलकुल नहीं। तूने जो कुछ किया केवल लोगों के दिखलाने को, जी से कुछ भी नहीं।" जो तू एक बार भी जी से पुकारा होता कि "दीनबंधु दीना- नाथ दीनहितकारी ! मुझ पापी महा अपराधी डूबते हुए को बचा और कृपादृष्टि कर" तो वह तेरी पुकार तीर की तरह तारों से पार पहुँची होती। राजा ने सिर नीचा कर लिया, उससे उत्तर कुछ न बन पाया। सत्य ने कहा कि भोज ! अब आ, फिर इस मंदिर के अंदर चलें और वहाँ तेरे मन के मंदिर को जाँचें। यद्यपि मनुष्य के मन के मंदिर में ऐसे ऐसे अँधेरे तहखाने और तलघरे पड़े हुए हैं कि उनको सिवाय सर्वदर्शी घट घट अंतर्यामी सकल जगत्स्वामी के और कोई भी नहीं देख अथवा जाँच सकता, तो भी तेरा परिश्रम व्यर्थ न जायगा।

राजा सत्य के पीछे खिंचा खिंचा फिर मंदिर के अंदर घुसा, पर अब तो उसका हाल ही कुछ से कुछ हो गया।

नि०-३