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पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/७२

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यों तो कवि-कुल-गुरु महर्षि वाल्मीकिजी की रामायण में इसके चित्रकूट आदि स्थानों का वर्णन मिलता है; परंतु महा- भारत में चेदि (चंदेरी) राजा के प्रसंग से इस देश का सवि- स्तर उल्लेख पाया जाता है । युगांतर का इतिहास होने से हमें यहाँ उसके वर्णन की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती और हम कवि चंद लिखित महोबा खंड के साक्ष्य पर चंदेलवंश का, जिसकी प्रथम राजधानी कालिंजर का दुर्गम दुर्ग अद्यापि उनके प्रतापशील होने की सुब दिलाता है और द्वितीय राजधानी खजूरपुर के अद्वितीय प्राचीन मठ, मंदिर, तड़ागादि अब तक के सूचक छत्रपुर राज्यांतर्गत खड़े हैं और तृतीय राजधानी महोबा के प्रबल वीर आल्हा, अदल, मलखान आदि ने एक बार समस्त भारत में चंदेलवंश की विजय का डंका पीट दिल्लीश्वर पृथ्वीराज तक को थर्रा दिया था और वे अपने आश्चर्यदायक विशाल चिह्न अब तक महोबे के सन्निकट स्थानों में छोड़ गए हैं, सविस्तर वर्णन करने का अलग संकल्प कर चुके हैं, इसलिये यहाँ पर इतना ही लिखते हैं कि इस प्रचंड वंश के भाग्य का सूर्य भी, सन् ११६७ ई० के लगभग दिल्लीश्वर पृथ्वीराज के भाग्यभानु के साथ ही साथ, यवनदीप के प्रज्वलित होने के समय, अस्ताचल को प्रस्थान कर गया और तदुपरांत वीर बुंदेलवंशीय राजपूतों के शासन का इस देश में प्रादुर्भाव हुआ। जब चंदेल-चंद्र के वियोग में बुंदेल-भू-कुमु- दिनी यवन-भाग्य-भास्कर को देख मुरझा रही थी, इस देश का