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पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/९२

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यूरोप के लोगों में बात करने का हुनर है। "आर्ट आफ

कनवरसेशन" यहाँ तक बढ़ा है कि स्पीच और लेख दोनों इसे नहीं पाते । इसकी पूर्ण शोभा काव्यकला-प्रवीण विद्वन्मंडली में है। ऐसे ऐसे चतुराई के प्रसंग छेड़े जाते हैं कि जिन्हें सुन कान को अत्यंत सुख मिलता है। सुहृद् गोष्ठो इसी का नाम है। सुहृद्- गोष्ठी की बातचीत की यह तारीफ है कि बात करनेवालों की लियाकत अथवा पांडित्य का अभिमान या कपट कहों एक बात में न प्रकट हो वरन् जितने क्रम रसाभास पैदा करनेवाले सभी को बरकते हुए चतुर सयाने अपनी बातचीत का अक्रम रखते हैं वह हमारे आधुनिक शुष्क पंडितों की बातचीत में जिसे शास्त्रार्थ कहते हैं कभी आवेगा ही नहीं। मुर्ग और बटेर की लड़ाइयों की झपटाझपटी के समान जिनकी नीरस कांव काँव में सरस संलाप का तो चर्चा ही चलाना व्यर्थ है, वरन् कपट और एक दूसरे को अपने पांडित्य के प्रकाश से वाद में परास्त करने का संघर्ष आदि रसाभास की सामग्रो वहाँ बहुतायत के साथ आपको मिलेगी। घंटे भर तक काँव काँव करते रहेंगे तो कुछ न होगा। बड़ी बड़ी कंपनी और कारखाने आदि बड़े से बड़े काम इसी तरह पहले दो चार दिली दोस्तों की बातचीत ही से शुरू किए गए। उपरांत बढ़ते बढ़ते यहाँ तक बढ़े कि हजारों मनुष्यों की उससे जीविका और लाखों की साल में आमदनी उसमें है। पचीस वर्ष के ऊपरवालों की बातचीत अवश्य ही कुछ न कुछ सारगर्भित होगी, अनुभव और दूर देशो से