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पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/९६

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इत्यादि पदार्थों के रस के प्रवाह को प्रथम ही देखने अथवा

नितांत शीत के कारण बर्फ से ढंके हुए स्फटिकमय प्रदेश में चलने से जो नया और अपूर्व अनुभव प्राप्त होता है उसका कुछ अकथनीय संस्कार मन पर होता है। ये चमत्कारमयी प्राकृतिक घटनाएँ मानों प्रकृति देवी की लीलाएँ हैं। इनके देखनेवाले को ऐसा मालूम होता है कि मानों वह किसी नए जगत् में खड़ा है और उसकी कल्पना और वर्णनशक्ति स्तंभित हो गई है।

प्रकृति के सौंदर्य को समझने के पूर्व हमें उसे देखने का अभ्यास करना चाहिए। प्रकृति की तरफ ध्यान न देने की अपेक्षा उसे देखना सहज है और जिस वस्तु की ओर मनुष्य देखे उसके रहस्य को जान लेना तो मनुष्य का स्वभाव ही है। सौंदर्य-शास्त्र का ज्ञाता रस्किन लिखता है-"हमारी जीवात्मा इस भूमि पर एक काम सर्वदा किया करती है- अर्थात् प्रकृति-निरीक्षण, और जो कुछ वह देखती है उसका वर्णन करती है।" ज्ञानवान् मनुष्य की आँखें हमारी आँखों से कुछ भिन्न नहीं हैं; परंतु हमें जो नहीं दिखाई देता वह उसे दिखाई देता है।कहा भी है-

बदन, श्रवण, दृग, नासिका, सब ही के इक ठौर

कहिबो, सुनिबा, देखिबो, चतुरन को कछु और ॥

जो कोई ध्यानपूर्वक देखने का अभ्यास करेगा उसे वर्षा-

ऋतु में हर घड़ी एक नया दृश्य दिखाई देगा। खेत में या जंगल में खड़े होकर देखने में अपूर्व वन-शोभा दिखाई पड़ती