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पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३०९

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रामभक्ति शाखा ३११ पेत बन सका। पूरे ग्रंथ में उपमानों और रूपकादि अलंकारों की नैसर्गिकता चित्त को विमुग्ध करती है। वे अलंकार और यह समस्त वर्णन रूढ़िवद्ध या अनुकरणशील कवि में था ही नहीं सकते। गोस्वा- मीजी में सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि थी, इसका परिचय स्थान स्थान पर प्राप्त होता है। ये कोरे भक्त ही नहीं थे मानव-चरित्र, उसकी सूक्ष्मताओं और ऋजु-कुटिल गतियों के पारखी भी थे, यह रामचरित- मानस में सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। मंथरा के प्रसंग में गोस्वामीजी का यह चमत्कार स्पष्ट लक्षित है। कैकेयी की आत्मग्लानि भी उन्होंने मौलिक रूप से प्रकट कराई है। ऐसे ही अन्य अनेक स्थल है। प्रकृति के रम्य रूपों का चित्र खड़ा करने को क्षमता हिंदी के कवियों में बहुत कम है, परंतु गोस्वामीजी ने चित्रकूट-वर्णन में संस्कृत कवियों से टक्कर ली है। इतना ही नहीं, भावों के अनुरूप भापा लिखने तथा प्रबंध में संबंधनिर्वाह और चरित्र-चित्रण का निरंतर ध्यान रखने में वे अपनी ससता नहीं रखते। उत्कट रामभक्ति के कारण उनके रामचरितमानस में उच्च सदाचार का जो एक प्रवाह सा चहा है, वह तो बाल्मीकि रामायण से भी अधिक गंभीर और पूत है। जायसी की भाषा और छंदों का विवेचन करते हुए हम कह चुके हैं कि उन्होंने जिस प्रकार दोहा-चौपाई छंदों में श्रवधी भाषा का प्राथय भापा और काव्य-शैली लेकर अपनी पद्मावत लिखी है, कुछ वर्षों के "" पश्चात् गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी उसी अवधी भाषा में उन्हीं दोहा-चौपाई छंदों में अपनी प्रसिद्ध रामायण की रचना की। यहाँ यह कह देना उचित होगा कि जायसी संस्कृतश नहीं थे; अतः उनकी भापा ग्रामीण अवधी थी, उसमें साहित्यिकता की छाप नहीं थी। परंतु गोस्वामीजी संस्कृतश और शास्त्रज्ञ थे, अतः उन्होंने कुछ स्थानों पर ठेठ श्रवधी का प्रयोग करते हुए भी अधिकांश स्थलों में संस्कृत-मिश्रित अवधी का व्यवहार किया है। इससे इनके रामचरित- मानस में प्रसंगानुसार उपर्युक्त दोनों प्रकार की भापात्रों का माधुर्य दिखाई देता है। यह तो हुई उनके रामचरितमानस की यात। उनकी विनय-पत्रिका, गीतावली और कवितावली आदि में ब्रजभाषा व्यवहृत हुई है। शौरसेनी अपभ्रंश की उत्तराधिकारिणी यह व्रजभापा विकसित होकर गोस्वामीजी के समय तक पूर्णतया साहित्य की भापा बन चुकी थी, क्योंकि सूरदास आदि भक्त कवियों की विस्तृत रचनाएँ इसमें हो रही थीं। गोस्वामीजी ने ब्रजभाषा में भी अपनी संस्कृत पदावली का सम्मिश्रण किया और उसे उपयुक्त प्रौढ़ता प्रदान की। इस प्रकार यह